राजस्थान और महाराष्ट्र में एक साथ लॉकडाउन लगा था, लेकिन महाराष्ट्र में अब हालात नियंत्रण में हैं, जबकि राजस्थान में बेकाबू।

राजस्थान और महाराष्ट्र में एक साथ लॉकडाउन लगा था, लेकिन महाराष्ट्र में अब हालात नियंत्रण में हैं, जबकि राजस्थान में बेकाबू।
कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से गठबंधन की सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केन्द्र से ऑक्सीजन और दवाएं नहीं मिलने का रोना भी रोया।
राजस्थान देश में सर्वाधिक 40 प्रतिशत संक्रमित दर है। ग्रामीण क्षेत्र के 7 लाख लोक संक्रमित हैं। क्या राजस्थान, महाराष्ट्र से सबक नहीं ले सकता?
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कोरोना की भयावह स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने संपूर्ण महाराष्ट्र में 15 अप्रैल से लॉकडाउन लागू कर दिया था। अगले ही दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी राजस्थान में लॉकडाउन लगा दिया। यानी राजस्थान और महाराष्ट्र में एक साथ लॉकडाउन लगा, लेकिन इन 24 दिनों में महाराष्ट्र में स्थिति नियंत्रण में है, जबकि राजस्थान में बेकाबू। राजस्थान के हालात इतने खराब हैं कि 7 लाख ग्रामीण कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। आज देश में सर्वाधिक 40 प्रतिशत संक्रमित दर राजस्थान की है। खुद मुख्यमंत्री गहलोत कह चुके हैं कि हालात सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं। 40 प्रतिशत संक्रमित दर और 7 लाख ग्रामीणों के संक्रमित होने से हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। आबादी के लिहाज से महाराष्ट्र राजस्थान से दो गुना बढ़ा है, लेकिन महाराष्ट्र में कोरोना नियंत्रण में है। अब केन्द्र सरकार भी महाराष्ट्र मॉडल की प्रशंसा करने लगी है। महाराष्ट्र के सभी अस्पतालों में मरीजों को ऑक्सीजन मिल रही है तथा रेमडेसिवीर इंजेक्शन और अन्य जरूरी दवाएं भी उपलब्ध हैं। मरीजों की भर्ती भी आसानी से हो रही है। कोरोना की दूसरी लहर में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने केन्द्र से ऑक्सीजन नहीं मिलने का रोना नहीं रोया। रेमडेसिवीर जैसी दवाइयां भी सीधे निर्माता कंपनियों से खरीद ली। महाराष्ट्र के लोगों को जो साधन चाहिए थे वो उद्धव ठाकरे ने अपनी सरकार के दम पर उपलब्ध करवाए। ऑक्सीजन के केन्द्र सरकार के भरोसे बैठे रहने के बजाए अपने प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहित कर मेडिकल ऑक्सीजन तैयार करवा लिया। आज महाराष्ट्र में स्वयं ऑक्सीजन ही पर्याप्त मात्रा में है। सब जानते हैं कि पहली और दूसरी लहर में सबसे ज्यादा बुरी दशा मुंबई और महाराष्ट्र की थी। सवाल उठता है कि जिस प्रकार महाराष्ट्र में ऑक्सीजन और जरूरी दवाइों का मैनेमेंट किया, उसी प्रकार राजस्थान में नहीं हो सकता था? राजनीतिक हालात जो राजस्थान के हैं वो ही महाराष्ट्र के हैं। यदि केन्द्र की ओर से राजस्थान के साथ राजनीतिक भेदभाव हुआ हो ऐसा भेदभाव महाराष्ट्र के साथ भी हुआ होगा, लेकिन उद्धव ठाकरे ने आमतौर केन्द्र सरकार पर आरोप नहीं लगाया, जबकि राजस्थान में अशोक गहलोत केन्द्र पर आरोप लगाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन देकर केन्द्र पर आरोप लगाए गए हैं। राजस्थान में जो लोग सरकार चला रहे हैं उन्हें यह बताना चाहिए कि कोरोना नियंत्रण में महाराष्ट्र आगे कैसे निकल गया? ऐसा नहीं कि राजस्थान के उद्यमियों मे काबिलियत और साहस की कमी है। बांगड़ समूह द्वारा संचालित श्री सीमेंट के पाली के प्लांट परिसर में ही मेडिकल ऑक्सीजन का प्लांट भी लगाया और जब पिछले 15 दिनों से श्री सीमेंट संस्था सरकार को रोजाना ऑक्सीजन के 200 सिलेंडर नि:शुल्क दे रहा है। ऑक्सीजन के ऐसे उत्पादन पर केन्द्र सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। सवाल उठता है कि राज्य सरकार ने श्री सीमेंट जैसे उपाय क्यों नहीं किए? जितना समय केन्द्र सरकार को कोसने में लगाया उसका आधा समय भी यदि प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों की ओर लगाया जाता तो आज राजस्थान ऑक्सीजन उत्पादन में आत्मनिर्भर होता। राजस्थान ऑक्सीजन उत्पादन में आत्मनिर्भर होता। राजस्थान में श्री सीमेंट की हौसला अफजाई करने की भी कोशिश नहीं की। यदि संवाद किया जाता तो श्री सीमेंट भी ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ा सकता था। राजस्थान में सरकार को चलाने वाले माने या नहीं लेकिन कोरोना नियंत्रण में महाराष्ट्र जैसे प्रयास नहीं किए गए। सीएम अशोक गहलोत के पास अनुभवी टीम का अभाव देखने को मिला है। खुद मुख्यमंत्री पद 20 विभागों का बोझ लदा हुआ है, जबकि प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की रुचि रेमडेसिवीर इंजेक्शन, वैक्सीन आदि खरीदने में ज्यादा है। चिकित्सा मंत्री के रूप में रघु शर्मा का कोई इनोवेशन देखने को नहीं मिला है।