कोरोना की वैश्विक महामारी ने जैसे सब कुछ बर्बाद सा कर दिया है। दुनिया भर के कई देशों में आज अर्थव्यवस्था की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि उन्हें इससे उबरने में ही कम से कम पांच सालों का समय लगेगा। इस मामले में भारत की वर्तमान स्थिति अच्छी नजर आ रही है। इस साल भी अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक धरातल पर सफलता के साथ ऊंचाइयों पर रखने में देश सफल रहेगा, जिसके कि संकेत कोरोना काल के महासंकट के दिनों के बीच भी मिल रहे हैं।
भारत दुनिया के देशों के बीच तेजी से बढ़ रहा आर्थिक क्षेत्र में आगे
दरअसल, कोरोना के कारण देश में व्यापार-व्यवसाय की स्थिति कितनी खराब रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। लेकिन इसके बाद भी यदि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चार जून को खत्म सप्ताह में 600 अरब डॉलर के नए रिकॉर्ड को पार कर जाए तो अवश्य ही एक नए उत्साह का संचार होता है । यह सीधे तौर पर बता रहा है कि भारत दुनिया के देशों के बीच आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिए सतत प्रयासरत है जिसमें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ राज्य सरकारों का निरंतर मिलनेवाला अहम योगदान महत्वपूर्ण है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बीते सप्ताह 6.842 आया अरब डॉलर का उछाल
दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि बीते सप्ताह में 6.842 अरब डॉलर का उछाल भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में आया है, जिसके बाद अब यह 605.008 अरब डॉलर का हो गया है। यदि इसमें इस एक वर्ष का ही विकास का गणित देखें तो यह विदेशी मुद्रा भंडार 100 अरब डॉलर ऊपर की ओर गया है। वास्तव में यह जो विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ता हुआ दिख रहा है, वह इसलिए है क्योंकि देश की जनता का अपनी सरकार में पूरा भरोसा, प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों पर वैश्विक इन्वेस्टर्स का भरोसा बना हुआ है। सरकार की लोककल्याण कारी नीतियां इसमें सबसे अहम भूमिका निभा रही हैं।
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्य बढ़कर पहुंचा 560.890 अरब डॉलर पर
आरबीआइ के आंकड़े कह रहे हैं कि समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) में 7.362 अरब डॉलर का इजाफा हुआ। इस बढ़त के साथ विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्य बढ़कर 560.890 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है। बता दें कि एफसीए में डॉलर समेत यूरो, पाउंड और येन जैसी मुद्राओं को भी शामिल किया जाता है। इनके मूल्य की गणना भी डॉलर के भाव में ही की जाती है।
सबसे तेज गति से बीते 12 माह में आई विदेशी मुद्रा भारत
यहां विदेशी मुद्रा भंडार में सर्वाधिक तेजी से बढ़ोत्तरी होने की सबसे खास बात दिखती है वह है 100 अरब डॉलर पिछले एक वर्ष के दौरान जुड़ना। इसके पीछे के विकासक्रम को देखें तो यह पहली बार हुआ है कि 12 महिनों में इतनी बड़ी पूंजी भारत अपने यहां संग्रहित करने में सफल रहा है । यहां तुलनात्मक रूप से भी देख सकते हैं कि पिछले 15 महिनों का आंकड़ा इस दिशा में किस तरह का रहा है । छह अप्रैल, 2007 को खत्म सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 200 अरब डॉलर के ऊपर पहुंचा था। उसके बाद वर्ष 2014 तक यह 300 अरब डॉलर पर पहुंच सका । यानी कि इसे पूरे सात वर्ष का समय लगा 100 से 300 अरब डॉलर का आंकड़ा पार करने में और इस तरह से विदेशी मुद्रा भंडार आठ सितम्बर, 2017 को 400 अरब डॉलर के ऊपर था। इसके बाद जून 2020 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 100 अरब डॉलर बढ़कर 500 अरब डॉलर के ऊपर पहुंचा था।
कोरोना के संकट काल में भी विदेशी निवेशकों ने जताया भारत पर भरोसा
हम सभी जानते हैं कि देश में यह कोरोना का संकट काल था। इस महामारी की पहली लहर अपने चरम पर थी, लेकिन इसके बाद भी भारत को लेकर वैश्विक निवेशकों का भरोसा लगातार बना रहा। यही कारण है कि पिछले एक वर्ष में मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) में 7.362 अरब डॉलर की बढ़ोत्तरी हुई और इस बढ़त के साथ विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्य बढ़कर 560.890 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है। अत: इसका सबसे अच्छा प्रभाव बीते सप्ताह में 6.842 अरब डॉलर का उछाल भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में हम सभी के सामने है।
केंद्र सरकार के प्रभावी कदम और योजनाओं के कारण बना रहा आर्थिक क्षेत्र में वैश्विक भरोसा
आर्थिक विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ पत्रकार रंजन श्रीवास्तव कहते हैं कि विदेशी मुद्रा भंडार में इस बढ़ोत्तरी का एक मुख्य कारण यह है कि कोरोना संकट के बावजूद इकोनॉमी की बुनियाद को लेकर विदेशी निवेशकों का भरोसा बरकरार रहना है। सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उनके सकारात्मक नतीजों को लेकर भी अधिकतर विदेशी निवेशकों और विशेषज्ञों ने सहमति जताई है। इसके साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि साल 1991 में देश को पैसा जुटाने सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है।
बढ़े हुए विदेशी मुद्रा भण्डार से देश रहेगा मौद्रिक दबाव से दूर
यहां रंजन श्रीवास्तव विदेशी मुद्राभण्डार के फायदे भी गिनाते नजर आए। उन्होंने कहा कि भारत इस धन से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से कर सकेगा। साथ ही मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार का एक फायदा यह भी होगा कि मौद्रिक दबाव की स्थिति में आरबीआइ इस भंडार का सदुपयोग करने की स्थिति में होगी। इतना ही नहीं तो अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है और वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
आर्थिक क्षेत्र में केंद्र सरकार की नीतियां सही दिशा में जा रहीं
उन्होंने बताया है कि विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभाता है। सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय लेने के साथ में अन्य ऐसे आकस्मिक खर्च कर सकती है जो उसे तत्काल में बहुत जरूरी लगते हैं, यह तभी होता है जब उसके पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध हो। वे कहते हैं कि तथ्यों के आधार पर देखें तो इसमें कोई संदेह नहीं, कोरोना के संकट के बीच मोदी सरकार की जो नीतियां आर्थिक क्षेत्र में रही हैं वे देश को आगे ले जाने वाली ही हैं।
मुद्रा लोन जैसी योजनाओं और स्टार्टअप से बना हुआ है भारत का आर्थिक क्षेत्र मजबूत
इसके साथ ही आर्थिक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र सिंह का कहना है कि सिस्टम की कमियों को लेकर सरकारों की आलोचना होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन आर्थिक दृष्टि से भारत को देखें तो विश्व के कई देशों में हमारे नेतृत्व और नीतियों पर भरोसा बना हुआ है। यही कारण है कि देश की कंपनियों में बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश हो रहा है। लोग भरोसा पर पैसा लगा रहे हैं। इसी तरह से आंतरिक स्तर पर सरकार की नीतियां उद्योग जगत को आगे ले जाने वाली साबित हो रही हैं।
उनका कहना है कि मुद्रा योजना से लेकर तमाम लोन संबंधी योजनाओं से देश में नए रोजगारों का सृजन तेजी के साथ पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिला है। देखा जाए तो ये सभी कारण संयुक्त रूप में देश की अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने के लिए जिम्मेदार हैं और इसलिए आज विदेशी मुद्रा भण्डार में बढ़ोत्तरी दर्ज होते हुए देखी जा रही है।