हिन्द महासागर में चीन का मुकाबला करने के लिए भारत अब खुद छह परमाणु पनडुब्बियां बनाएगा, जिसके लिए सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से मंजूरी मिलने का इन्तजार है। भारत के पास सिर्फ एक परमाणु पनडुब्बी है, इसलिए स्वदेशी परियोजना के तहत जल्द ही पहले तीन पनडुब्बियों की मंजूरी मिलने की सम्भावना है। इसके बाद तीन और पनडुब्बियों के लिए मंजूरी दी जाएगी। पहली परमाणु पनडुब्बी 2032 या उसके आसपास नौसेना को मिलेगी।
नौसेना के पास इस समय इकलौता विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य है, जिसे 16 नवम्बर, 2013 को सेवा में शामिल किया गया था। नौसेना का दूसरा विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत अभी परीक्षण के दौर से गुजर रहा है। इसके 2021 के अंत या 2022 की शुरुआत में नौसेना के परिवार का हिस्सा बनने की उम्मीद है। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को देखते हुए भारतीय नौसेना को तीसरे विमानवाहक युद्धपोत की भी आवश्यकता है, जिसके बारे में शीर्ष स्तर पर चर्चा भी हुई है। नौसेना को सीमित बजट देखते हुए अपनी जरूरत के हिसाब से छह परमाणु पनडुब्बियों या तीसरे विमानवाहक युद्धपोत में से किसी एक को चुनना था, जिसमें छह परमाणु पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण परियोजना पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
नौसेना के पास अभी तक सिर्फ दो परमाणु पनडुब्बियां आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र थीं। आईएनएस चक्र को रूस से 10 साल की लीज पर लिया गया था। इस पनडुब्बी की दस साल की लीज जनवरी, 2022 में समाप्त होनी थी लेकिन भारत ने लीज अवधि न बढ़ाने का फैसला लेकर लगभग दस महीने पहले ही उसे रूस को लौटा दिया है। भारत ने 2019 में रूस से अकुला श्रेणी की तीसरी परमाणु संचालित हमला पनडुब्बी आईएनएस चक्र-III को पट्टे पर देने के लिए 3.3 बिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। रूस से 2025 में 10 साल के लिए परमाणु क्षमता से लैस दूसरी पनडुब्बी मिलेगी।
अब नौसेना के पास स्वदेशी रूप से निर्मित इकलौती परमाणु पनडुब्बी अरिहंत बची है। अरिहंत का जलावतरण तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर ने 26 जुलाई, 2009 को किया था। यह दिन इसलिए भी चुना गया, क्योंकि इस दिन को कारगिल विजय दिवस या विजय दिवस रूप में मनाया जाता है। गहन बंदरगाह और समुद्री परीक्षणों से गुजरने के बाद अरिहंत पनडुब्बी अगस्त, 2016 में भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल की गई थी। इसी श्रेणी की दूसरी परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिघाट भी समुद्री परीक्षणों से गुजर रही है और निकट भविष्य में इसके चालू होने की उम्मीद है।
चीन के पास करीब एक दर्जन ऐसी परमाणु पनडुब्बियां हैं। उसकी नई पनडुब्बी टाइप 095 बेहद शांति से समुद्र में चलती है। इसलिए चीन की साजिशों को जवाब देने के लिए भारतीय नौसेना को भी परमाणु पनडुब्बियों की जरूरत है। भारत ने 6,000 टन से अधिक वजन वाली छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण की योजना बनाई है। शुरुआत में सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से केवल तीन ही पनडुब्बियों के निर्माण की मंजूरी दी जाएगी, जिसमें से पहली परमाणु पनडुब्बी 2032 या उसके आसपास नौसेना को मिलेगी। भारतीय नौसेना के लिए छह स्वदेशी परमाणु हमले वाली पनडुब्बियां बनाने के प्रस्ताव को 2014 में सत्ता में आने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी थी।
भारत की सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) 06 में से तीन परमाणु हमले वाली पनडुब्बियों (एसएसएन) के स्वदेशी निर्माण के लिए लगभग 6.8 बिलियन डॉलर के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। यह परियोजना (एसएसबीएन) अरिहंत श्रेणी की परियोजना से अलग है। स्वदेशी रूप से बनने वाली पहली तीन परमाणु हमले वाली पनडुब्बियों में 95 प्रतिशत ‘भारत में निर्मित’ सामग्री होगी। इनका निर्माण विशाखापत्तनम में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) करेगा। प्रत्येक पनडुब्बी के निर्माण पर लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी। यह परियोजना भारत में पनडुब्बी निर्माण क्षमता बढ़ाने में निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों सहित घरेलू रक्षा क्षेत्र को बड़ा बढ़ावा देगी। इस परियोजना से रक्षा क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोजगार सृजित होने की उम्मीद है, क्योंकि इससे रक्षा क्षेत्र में बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा होंगी।