जावेद अख्तर जैसे मुसलमान ही भारत के मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं।
क्या आरएसएस की तुलना तालिबान से की जा सकती है? अख्तर बताएं कि आरएएस का कौन सा काम तालिबान जैसा है?
आरएसएस यदि तालिबानी होता तो जावेद अख्तर मुंबई में फिल्मों में काम नहीं कर सकते थे।
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फिल्मकार जावेद अख्तर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तुलना अफगानिस्तान पर बंदूक की नोंक पर कब्जा करने वाले मुस्लिम चरमपंथी संगठन तालिबान से की है। अख्तर को लगता है कि जो सोच तालिबान की है, वहीं आरएसएस की है। असल में जावेद अख्तर जैसे मुसलमान ही भारतीय मुसलमानों को गुमराह करते हैं। अख्तर को यह बताना चाहिए कि आरएसएस का कौन सा काम तालिबान जैसा है? क्या आरएसएस ने कभी लड़के लड़कियों के एक साथ पढऩे पर एतराज जताया? क्या आरएसएस ने कभी महिलाओं के कामकाज पर एतराज किया? जावेद अख्तर की लिखी कहानियों पर बनने वाली फिल्मों में लड़कियों के काम करने पर एतराज जताया? जावेद अख्तर ने अपने वापंथी नजरिए से चाहें जैसे फिल्में बनाई, क्या कभी आरएसएस ने एतराज जताया? अभिव्यक्ति की आड़ में भारतीय सनातन संस्कृति की मजाक उड़ाने वाली फिल्मों पर आरएसएस ने कभी एतराज किया? इतनी आजादी और पैसा कमाने के बाद भी जावेद अख्तर आरएसएस की तुलना तालिबान से कर रहे हैं। अख्तर ने यह बयान तब दिया है, तब आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले ही दिनों कहा है कि देश के मुसलमानों और हिन्दुओं का डीएनए एक ही हे। एक और आरएसएस प्रमुख हिन्दू, मुस्लिम एकता और सद्भावना की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर जावेद अख्तर आरएसएस की तुलना तालिबान से कर रहे हैं। यदि आरएसएस की सोच तालिबान जैसी होती तो जावेद अख्तर मुंबई में फिल्मों में अपनी भूमिका नहीं निभा सकते थे। समझ में नहीं आता कि अख्तर ने आरएसएस की तुलना तालिबान से कैसे कर दी? यह सही है कि भारतीय जनता पार्टी, संघ परिवार का सदस्य हैं। यह कहा जा सकता है कि भाजपा, संघ की राजनीतिक शाखा है। लेकिन भाजपा ने भी तालिबान जैसा कोई कार्य नहीं किया गया है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की जोर सरकार चल रही है, वह निर्वाचित सरकार है। जावेद अख्तर जैसों के लाख विरोध के बाद भी दो बार देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता माना है। संघ परिवार की राजनीतिक शाखा भाजपा ने बंदूक की नोंक पर देश की सत्ता नहीं हथियाई है, जबकि तालिबान की करतूत तो पूरा विश्व देख रहा है। अख्तर ने जिस आरएसएस की तुलना तालिबान से की उसी आरएसएस की राजनीतिक शाखा की सरकार के सामने अफगानिस्तान के मुसलमान खस कर महिलाएं गिड़गिड़ा कर भारत चलने की मन्नतें करती देखी गईं। जब ऐसी मुस्लिम महिलाएं और बच्चे काबुल एयरपोर्ट से दिल्ली पहुंचे तो अपने आप को सुरक्षित समझ रहे थे। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति ही रही कि अफगानिस्तान से भारतीयों के साथ अफगानी नागरिकों को भी सुरक्षित लाया गया। क्या अफगानी महिलाओं और बच्चों को भारत लाना आरएसएस और नरेंद्र मोदी की तालिबानी सोच है? जावेद अख्तर भी इस तथ्य को अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया में मुसलमान सबसे सुरक्षित स्वयं को भारत में समझता है। भले ही मुस्लिम राष्ट्रों में इतनी आजादी न हो, भारत में मुसलमान अपने धर्म के अनुरूप रह सकता है। अख्तर बताएं कि मुसलमानों को भारत जैसी स्वतंत्रता किस देश में है? अख्तर जिस आरएसएस की तुलना तालिबान से कर रहे हैं उस आरएसएस में जैन समुदाय के लोग भी शामिल हैं। जैन संस्कृति में तो शरीर से निकलने वाले श्वास से भी यदि कोई जीव मरता है तो उसे पाप माना जाता है। एक तरफ आरएसएस की ऐसी संस्कृति है तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाके सरेआम कत्लेआम कर रहे हैं। जावेद अख्तर जैसी सोच वालों को यह समझना चाहिए कि तालिबान अफगानिस्तान में किसी हिन्दू और ईसाई को नहीं मार रहे। तालिबानियों की बंदूक के सामने मुसलमान ही है। जावेद अख्तर बताएं कि तालिबानी आखिर मुसलमानों को क्यों मार रहे हैं? अख्तर जैसे मुसलमान ही भारतीय मुसलमानों को गुमराह करते हैं। भारत की हिन्दू समाज तो सूफीवाद में भी भरोसा करता है, इसलिए लाखों करोड़ों हिन्दू दरगाहों में जाकर जियारत करते हैं। अच्छा हो कि अख्तर जैसी सोच वाले लोग भारत की सनातन संस्कृति को समझने का प्रयास करें।