केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉं. जितेंद्र सिंह ने आज उत्तर-पूर्व के लिए मोबाइल कोविड परीक्षण सुविधा को शुरू किया। इसकी शुरुआत मिजोरम से की गई। इस अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री पु जोरामथांगा वर्चुअल माध्यम के जरिए उद्घाटन समारोह में शामिल हुए।
यह अपनी तरह की पहली मोबाइल डायग्नोस्टिक प्रयोगशाला (आई-एलएबी) है और आरटी-पीसीआर और ईएलआईएसए परीक्षण, दोनों को करने में सक्षम है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस प्रयोगशाला को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की सहायता से विकसित किया गया है। यह भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में कोविड परीक्षण की सुविधा प्रदान करने के लिए है। उन्होंने आगे बताया कि इसमें जैव सुरक्षा से संबंधित सुविधा है और यह आरटी-पीसीआर व ईएलआईएसए, दोनों परीक्षणों को करने में सक्षम है। इसके अलावा इस सुविधा का उपयोग टीबी, एचआईवी जैसे अन्य संक्रामक रोगों के परीक्षण के लिए भी किया जा सकता है। इसे देखते हुए कोविड के बाद के समय में भी इसकी उपयोगिता बनी रहेगी।
मौजूदा महामारी की स्थिति से विजयी होकर भारत के सामने आने को लेकर विश्वास व्यक्त करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व्यक्तिगत रूप से दैनिक आधार पर कोविड स्थिति की निगरानी कर रहे हैं और महामारी नियंत्रण गतिविधियों के लिए प्रभावी कदम उठा रहे हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की जनसंख्या के रोगों के प्रोफाइल के अनुरूप आई-लैब को टेली-परामर्श सुविधा से जोड़ने का आह्वाहन किया। उन्होंने आगे बताया कि मोबाइल प्रयोगशाला के साथ मैमोग्राफी और आंखों की जांच जैसे परीक्षण जोड़े जा सकते हैं और यह इस क्षेत्र के लोगों के लिए लाभदायक होगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जब से नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला है, उन्होंने भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास को विशेष प्राथमिकता दी है। डॉ. सिंह ने आगे कहा कि यह सुविधा उस प्रतिबद्धता का ही एक प्रमाण है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र की अद्वितीय जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों में मोबाइल प्रयोगशाला प्रौद्योगिकी को धीरे-धीरे शुरू किया जाएगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने अथक, समर्पित और प्रतिबद्ध प्रयासों के जरिए इस अद्वीतीय व अभिनव सुविधा के निर्माण के लिए एएमटीजेड (आंध्र प्रदेश मेडटेक जोन) की टीम के किए गए प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा, “डीबीटी ने स्वदेशी रूप से विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल तकनीकों के निर्माण के लिए एएमटीजेड में विनिर्माण सुविधा भी स्थापित की है, जिसका बड़े पैमाने पर आयात किया जाता है। इससे हमें मेक-इन इंडिया, मेक फॉर इंडिया पर हमारे प्रधानमंत्री जी की सोच को साकार करने में सहायता मिलती है।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इन सामूहिक और सहकारी प्रयासों के साथ भारत अब स्वास्थ्य देखभाल तकनीकों के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने व देश में लोगों के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए इसे प्रभावी ढंग से पूरा करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत के इतिहास में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कोविड-19 के परीक्षण और टीकाकरण की दिशा में किए गए प्रयास अभूतपूर्व रहे हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि भारत ने न केवल अपनी बड़ी जनसंख्या की विशाल जरूरतों को पूरा किया है, बल्कि उन कई देशों की सहायता भी की है, जिनके पास स्वास्थ्य देखभाल तकनीकों के अनुसंधान व निर्माण के लिए अपेक्षित क्षमताएं नहीं थीं।
इस अवसर पर मिजोरम के मुख्यमंत्री पु जोरामथांगा ने मोबाइल-लैब परीक्षण सुविधा के लिए डॉ. जितेंद्र सिंह का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इससे सीमावर्ती जिलों और आरटी-पीसीआर परीक्षण सुविधा की कमी वाले सुदूर क्षेत्रों में कोविड परीक्षण के अंतर को समाप्त करने में सहायता मिलेगी।
वहीं, मिजोरम के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. आर. ललथंगलियाना ने अपने संबोधन में कहा कि इस महामारी ने स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को काफी प्रभावित किया है, विशेषकर उत्तर-पूर्वी राज्यों में। उन्होंने कहा कि आई-लैब कोविड परीक्षण व इलाज के लिए कठिन और दुर्गम इलाकों के लोगों तक पहुंचने के मामले में काफी आगे जाएगा।
डीबीटी सचिव डॉ. राजेश गोखले ने कहा कि संक्रामक रोगों जैसे कि तपेदिक (टीबी) और एचआईवी की जांच में सक्षम होने के चलते मोबाइल डायग्नोस्टिक प्रयोगशाला (आई-एलएबी) कोविड के बाद भी पूरे साल प्रासंगिक रहेगी।
एएमटीजेड के एमडी जे. के. शर्मा ने कहा कि एक साल में प्रीमियर मेडिकल टेक्नोलॉजी पार्क विश्व के सबसे बड़े चिकित्सा प्रौद्योगिकी विनिर्माण क्लस्टर में से एक के रूप में सामने आया है। उन्होंने आगे बताया कि इसमें 100 से अधिक कंपनियां जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरणों के अनुसंधान, विकास और उत्पादन पर काम कर रही हैं।
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