गेंहू खरीद का सरकारी पैसा अब पंजाब के किसानों के बैंक खाते में जमा होगा। अब तक सरकारी पैसे का भुगतान आढ़तीये (दलाल) करते थे।
पंजाब के किसान अब तो समझे दलालों की भूमिका। दलालों के कारण ही तीन कृषि बिलों का विरोध कांग्रेस और अकाली दल मिल कर रहे हैं।
इस बार केन्द्र सरकार समर्थन मूल्य पर जो गेंहू खरीदेगी, उसका भुगतान पंजाब के किसानों के बैंक खातों में किया जाएगा। अब तक सरकारी पैसे का भुगतान पंजाब की मंडियों में बैठे आढ़तीये (दलाल) करते थे। यानी किसानों के गेहंू का भुगतान केन्द्र सरकार पहले आढ़तियों के खाते में जमा करवाती थी और फिर आढ़तीये अपने नजरिए से किसानों को भुगतान करते थे, लेकिन इस बार केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि किसानों के गेहूं का पैसा किसी भी आढ़तिये को नहीं दिया जाएगा। जो किसान जितना गेहंू सरकार को बेचेगा उसके हिसाब से किसान के बैंक खाते में राशि जमा करवा दी जाएगी। हालांकि पहले तो अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विरोध किया, लेकिन केन्द्र सरकार के सख्त रुख को देखते हुए पंजाब सरकार को सहमति देनी पड़ी है। इस फैसले से सबसे ज्यादा फायदा पंजाब के किसानों को हुआ है। दलालों की वजह से पंजाब के अधिकांश किसान हमेशा कर्ज में दबे रहते थे। चूंकि गेहंू का सरकारी पैसा भी दलालों के माध्यम से मिलता था, इसलिए दलालों की हर शर्त किसानों को माननी पड़ती थी। पंजाब के किसानों को दलालों के चंगुल से निकालने की इस बार प्रभावी पहल हुई है। सवाल उठता है कि आखिर केन्द्र के पैसे का भुगतान मंडियों के दलाल क्यों करते थे? असल में पंजाब में मंडियों पर अकाली दल और कांग्रेस से जुड़े लोगों का कब्जा रहा। पंजाब में अब तक कांग्रेस और अकाली दल की सरकारों का ही राज रहा है। इन पार्टियों की वजह से ही पंजाब के किसानों का शोषण होता रहा। यह सही है कि अकाली दल अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए भाजपा के साथ चिपका रहा। गत वर्ष जब भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई तो सबसे पहले अकाली दल ने विरोध किया। पंजाब के किसानों को अब समझ लेना चाहिए कि अकाली दल कृषि कानूनों का विरोध क्यों कर रही है? जब गेहूं खरीद का पैसा सीधे किसान के खाते में जाएगा तो पंजाब में दलालों की भूमिका समाप्त हो जाएगी, जबकि कांग्रेस और अकाली दल दलालों के समर्थक रहे हैं। सब जानते हैं कि कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसानों के नाम पर जो आंदोलन हुआ, उसमें दलालों की ही भूमिका रही। आज भी दिल्ली की सीमाओं पर ऐसे लोग ही धरना देकर बैठे हैं। हालांकि अब पहले जैसी भीड़ नहीं है। अब जब सरकारी पैसा सीधे किसान के खाते में जाएगा, तब आंदोलन करने वाले नेताओं के चेहरे से नकाब और सरक जाएगा। कहा जा रहा है कि नए कानून से किसान खुश नहीं है, अब पता चला कि किसानों की मेहनत का पैसा दलाल हड़प रहे थे। जब किसान को सीधे भुगतान होगा तो वह खुश ही होगा। अब किसानों को गुमराह करने वालों की भी पोल खुल रही है। नए कानूनों के प्रावधान जैसे जैसे लागू होंगे, वैसे वैसे किसान खुशहाल होगा। भारत में कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की जरुरत है।