अजमेर के कोटड़ा स्थित बीके कौल नगर में प्राचीन बाल वीर हनुमान मंदिर परिसर में लगे हैं कल्पवृक्ष के पेड़ (नर-मादा)।

अजमेर के कोटड़ा स्थित बीके कौल नगर में प्राचीन बाल वीर हनुमान मंदिर परिसर में लगे हैं कल्पवृक्ष के पेड़ (नर-मादा)।
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक है कल्पवृक्ष का पेड़। सावन माह की हरियाली अमावस्या पर पूजा अर्चना का विशेष धार्मिक महत्व। 8 अगस्त को है हरियाली अमावस्या।
कल्पवृक्ष की आयु 6 हजार वर्ष तक मानी जाती है-पर्यावरणविद् महेन्द्र विक्रम सिंह।
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धार्मिक मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ, तब 14 रत्न निकले। इनमें कल्पवृक्ष के पेड़ भी हैं। यही वजह है कि कल्पवृक्ष के पेड़ का सनातन संस्कृति से खास धार्मिक महत्व है। यूं तो कल्पवृक्ष के पेड़ वर्ष भर आशीर्वाद देते हैं, लेकिन सावन माह में जो व्यक्ति इन वृक्षों की पूजा अर्चना करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। सावन माह की हरियाली अमावस्या के दिन तो पूजा पाठ का खास महत्व है। इस बार हरियाली अमावस्या 8 अगस्त को है। यानी इस दिन जो व्यक्ति कल्पवृक्ष की पूजा करेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। राजस्थान में अजमेर के निकट मांगलियावास में कल्पवृक्ष का मेला भी हरियाली अमावस्या को भरता है जो पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हैं। हालांकि अब मांगलियावास में कल्पवृक्ष का एक ही पेड़ है। अजमेर के कोटड़ा स्थित बीके कौल नगर में प्राचीन बालवीर हनुमान मंदिर परिसर में नर मादा जाने वाले कल्पवृक्ष के दो पेड़ लगे हुए हैं। यह मंदिर डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। कोई दस वर्ष पहले एक साधु महात्मा मंदिर के उपासक भूपेश सांखला को कल्पवृक्ष के दो पौधे देकर गए थे। साधु महात्मा की शर्त यही थी कि इन पौधों को इसी मंदिर परिसर में लगाया जाए। महात्मा के निर्देश पर ही सांखला ने दोनों पौधों को मंदिर परिसर में लगाया। ये पौधे आज 20-20 फिट के पेड़ बन गए हैं। सांखला ने बताया कि यह पहला अवसर है जब कल्पवृक्ष के पेड़ों की जानकारी सार्वजनिक की जा रही है। अब यह सुनिश्चित हो गया है कि कल्पवृक्ष के दोनों पेड़ हजारों वर्षों तक खराब नहीं होंगे। मंदिर परिसर में कल्पवृक्षों की पूजा अर्चना करने का पर्याप्त स्थान है। मंदिर परिसर में प्राचीन बाल वीर हनुमान की स्वयं प्रकट प्रतिमा के साथ साथ शिव परिवार, राधा कृष्ण, मातारानी और सिद्धि के दाता गणेश जी विराजमान हैं। कल्पवृक्षों के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 9414277748 पर भूपेश सांखला से ली जा सकती है।
उम्र 6 हजार वर्ष तक:
मशहूर पर्यावरणविद महेन्द्र विक्रम सिंह ने बताया कि किसी पेड़ की पहचान नर मादा के तौर पर नहीं होती है। पौधों की किस्म अलग अलग होती है। चूंकि कल्पवृक्ष धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है, इसलिए दो टहनियों वाले पेड़ को मादा मान लिया जाता है, जबकि एक सीधी टहनी वाले को नर। यही वजह है कि दो टहनियों वाले पेड़ पर चूनरी रखी जाती है, जबकि एक टहनी वाले पेड़ पर लच्छा बांधा जाता है। उन्होंने बताया कि पुष्कर स्थित जोगणिया धाम के उपासक आदरणीय भंवर जी के पुष्कर के निकट रेवत गांव के फार्म हाउस में भी कल्पवृक्ष के दो पेड़ लगे हुए हैं। हालांकि कल्पवृक्ष के पेड़ मुश्किल से लगते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण कल्पवृक्ष के पेड़ कई स्थानों पर मिल जाएंगे। सनातन संस्कृति में पेड़ पौधों को धर्म से इसलिए जोड़ा गया है कि देखभाल हो सके। कोरोना वायरस ने संपूर्ण मानव जाति को पेड़ों का महत्व समझा दिया है। महेन्द्र विक्रम सिंह ने बताया कि कल्पवृक्ष का धार्मिक महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इसकी उम्र 6 हजार वर्ष तक मानी गई है। वैज्ञानिक की राय में हर पेड़ मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व रखता है। कल्पवृक्ष के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर मोबाइल नम्बर 9829685650 पर महेन्द्र विक्रम सिंह से राय ली जा सकती है।
अजमेर के कोटड़ा स्थित बीके कौल नगर में प्राचीन बाल वीर हनुमान मंदिर परिसर में लगे हैं कल्पवृक्ष के पेड़ (नर-मादा)।