केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 36वीं बैठक की अध्यक्षता की

         केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में तकनीकी शिक्षा और औषधीय शिक्षा का भी संपूर्ण अभ्‍यासक्रम राजभाषा में भाषांतरण कराने का काम शुरू किया है और देश के अंदर यह परिवर्तन आने वाला है। यदि तकनीकी शिक्षा और औषधीय शिक्षा का अभ्यासक्रम राजभाषा में भाषांतरण हो जाएगा, अनुवाद हो जाएगा तो हिंदी में पढ़े हुए बच्चे मेडिकल एग्जाम और डॉक्टर बनने की पूरी प्रक्रिया हिंदी में ही कर सकते हैं, इसके बाद अनुसंधान भी कर सकते हैं। उन्होने कहा कि इसी प्रकार से तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग की सभी विधाओं का अभ्यासक्रम का भी भाषांतरण किया जाएगा। ज्ञान का अनुसंधान भी स्‍थानीय भाषाओं में करने से आचार्य विनोबा भावे का सपना साकार होगा। श्री अमित शाह ने कहा कि आजादी के आंदोलन में ढेर सारे नेता महात्मा गांधी, सरदार पटेल, नेहरू जी, राजेंद्र बाबू, विनोबा भावे जो इस मिशन में प्रमुख थे उन्होंने राजभाषा के पहलुओं को हर राज्य की जनता के सामने रखा, देवनागरी लिपि को हर राज्य में रखा। राजभाषा इस देश को जोड़ने की कड़ी है लेकिन साथ में स्थानीय भाषाओं का महत्‍व भी कम नहीं होना चाहिए। हम इस दिशा में द्रुत गति से चल पड़े हैं और आने वाले समय में स्वतंत्रता सेनानियों के संकल्प को पूरा करने का काम कर पाएंगे। श्री शाह ने कहा कि मोदी जी ने राजभाषा को राष्ट्रीयता के साथ जोडा। हमारी आजादी के आंदोलन की स्वभाषा, स्वदेशी और स्वराज तीन नींव थीं। स्वराज के संस्कार की कल्पना, स्वभाषा और स्वदेशी से ही हो सकती है। स्वराज की कल्पना 15 अगस्त 1947 को आजादी के रूप में परिवर्तित हुई। राजेंद्र बाबू ने कहा था कि हमारी राजभाषा हिंदी राष्ट्र की सामूहिक चेतना की मां है, यह संकल्पना आज सच होने जा रही है।

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     श्री अमित शाह ने कहा कि न्याय के अंदर भी हिंदी का प्रयोग होना चाहिए इसके लिए न्यायविदों के साथ चर्चा करनी पड़ेगी। आजादी के 75 साल होने पर आजादी के आंदोलन में राजभाषा हिंदी की भूमिका यह थीम होना चाहिए। देश की संसद के सामने उसको उपस्थित करना चाहिए कि हमारी स्‍थानीय भाषाओं और राजभाषा ने देश के आंदोलन में कितना बड़ा योगदान दिया है। गृह मंत्री ने कहा कि स्‍थानीय साहित्‍यकारों ने आंदोलन को गति देने के लिए अनेक साहित्य लिखे। हम सब का यह सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि क्षेत्रीय सम्मेलन और राष्ट्रीय सम्मेलन की थीम इसके आधार पर होनी चाहिए। इस विषय के विशेषज्ञों को बुलाकर, साहित्यकारों को बुलाकर पूरे देश के अंदर यह संदेश जाना चाहिए कि हमारी आजादी के आंदोलन में स्थानीय भाषाएं और राजभाषा का कितना बड़ा योगदान रहा है। साथ ही क्षेत्रीय इतिहास का भी राजभाषा में ढंग से अनुवाद होना चाहिए। लाल बहादुर शास्त्री जी ने इस दिशा में विशेष प्रयास किया था किंतु उसके बाद वह प्रयास मंथर गति से चल रहा है। एक उदहारण स्वरुप अगर  गुजरात के एक बच्चे को विजयनगर साम्राज्य के बारे में पढ़ना है तो अंग्रेजी के अलावा कोई विकल्प नहीं है, ऐसे अन्य कई राज्यों के उदहारण हैं।
केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि विभिन्न दलों के सांसदों के साथ चर्चा करके स्थानीय इतिहास की स्थानीय भाषा की पुस्तकों की एक सूची बनाएं और उस सूची की पुस्तकों का भारत सरकार का संस्कृति विभाग अनुवाद कराए और देश के अच्छे पुस्तकालयों में इसे उपलब्ध कराना चाहिए और इसके विक्रय की भी व्यवस्था हो। उन्होंने कहा कि इतिहास पढ़ने वाले बच्चों के लिए अगर राजभाषा में देश के हर कोने का इतिहास उपलब्ध हो जाएगा, कश्मीर से कन्याकुमारी तक का इतिहास, तो अपने आप राजभाषा का प्रचार बढ़ेगा और इससे बच्चों के शब्दों की जानकारी का भंडार समृद्ध हो जाएगा।

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     केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि हमारी भाषाओं के बीच साम्यता है, एक ना दिखाई देने वाला संवाद भी है और इसकी अनुभूति करने पर ही इसके बारे में जाना जा सकता है। उन्होंने कहा कि हर भाषा के ढेर सारे शब्द किसी दूसरी भाषा के साथ जुड़े हैं, व्याकरण का मूल भी एक ही है।
     श्री अमित शाह ने इस बात पर बल दिया कि हिन्दी की स्वीकृति सहमति से होनी चाहिए और तभी राजभाषा को राष्ट्रीय एकता का सूत्र जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने बताया था, उसे सफल कर पाएंगे। श्री शाह ने  कहा कि सरकार हर अच्छे सुझाव को स्वीकार करने को तैयार है क्योंकि सुझाव का कोई कार्यक्षेत्र नहीं होता है। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जब हम आज़ादी के 75वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं तो हमारी समिति की प्रासंगिकता और उपयोगिता दोनों ही बहुत बढ़ जाते हैं। उन्होंने सभी से सामूहिक प्रयासों द्वारा हिन्दी को अधिक लोकभोग्य बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हिन्दी में बोलकर हमारी भाषा का प्रचार और प्रसार किया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी के संसद में दिए गए सारे भाषण भी हिन्दी में ही हैं और उनके इसी आग्रह से ही समिति को प्रेरणा लेनी चाहिए।
     श्री अमित शाह ने कहा कि टोक्यो ओलिंपिक में पहली बार हिन्दी में कॉमेन्ट्री की व्यवस्था की गई और हिन्दी कॉमेन्ट्री देखने – सुनने वाले लोग 72 प्रतिशत थे और ये हमारे लिए बहुत उत्साहवर्धन वाली बात है।
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एनडब्‍ल्‍यू/आरके/एडी/डीडी