भारत के अधिकांश मुस्लिम नेता अफगानिस्तान में तालिबान के आतंक की आलोचना करने से बच रहे हैं।
अमरीका की बमवर्षा का भी असर नहीं। काबुल मजार-ए-शरीफ और कंधार को छोड़ कर अधिकांश राज्यों पर तालिबान का कब्जा।
मजार-ए-शरीफ से भारतीयों को एयरलिफ्ट कर दिल्ली लाया गया।
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भारत के लिए यह संतोषजनक बात है कि 11 अगस्त को अफगानिस्तान के मजार-ए-शरीफ से अनेक भारतीयों को एयरलिफ्ट कर दिल्ली ले आया गया है। अफगानिस्तान के जो हालात हैं, उनमें अब भारतीय नागरिकों को वहां रखा नहीं जा सकता है। अमरीका की सेना की वापसी के साथ ही कट्टरपंथी संगठन तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान में पैर पसार लिए हैं। राजधानी काबुल, कंधार और मजार-ए-शरीफ को छोड़कर अधिकांश अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है। इसके साथ ही 12 वर्ष से अधिक उम्र की विधवा लड़कियों के अपहरण की वारदातें बढ़ गई है। तंग कपड़े पहनने वाली लड़कियों को सरेआम गोली मारी जा रही है। इतना ही नहीं 16 साल की लड़कियों को घरों से बाहर निकलने पर रोक लगाई गई है।
चूंकि अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र है इसलिए सारी पाबंदियां मुसलमानों पर ही हैं। तालिबान का अपना धार्मिक कानून है जो सभी पर लागू होता है। तालिबान की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमरीका की बमवर्षा का भी कोई असर नहीं हुआ। तालिबान के लड़ाके पूरी ताकत से राजधानी काबुल की ओर बढ़ रहे हैं। चीन और रूस के संयुक्त युद्धाभ्यास का भी तालिबान पर कोई असर नहीं पड़ा है। पाकिस्तान तालिबानियों को पहले ही मदद कर रहा है, इसलिए अफगानिस्तान के हालातों का सबसे ज्यादा बुरा असर भारत पर पड़ेगा। तालिबान के लड़ाके अपने ही मुस्लिम समुदाय पर कितना कहर बरपाते हैं, इसके बारे में भारत के मुस्लिम नेता अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे नेताओं को यह भी पता है कि अफगानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं को किस तरह प्रताड़ित किया जा रहा है, लेकिन भारत के अधिकांश मुस्लिम नेता तालिबान की आलोचना से बच रहे हैं। ये वो ही नेता है जो छोटी छोटी बातों पर भारत में हंगामा खड़ा करते हैं। सवाल हिन्दू मुसलमान का नहीं है, सवाल मानव जाति का है।
क्या मौजूदा दौर में तालिबान के कानून के अनुसार जीवन व्यतीत किया जा सकता है? हालांकि सीमा पर भारतीय फौज मौजूद हैं, लेकिन भारत के अंदर भी तालिबान की विचारधारा के समर्थक हैं। यदि अफगानिस्तान पर तालिबान विचारधारा कब्जा करती है तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। भारत में करीब 23 करोड़ मुसलमान रह रहे हैं। अब समय आ गया है, जब सभी को मिलकर तालिबानी सोच का विरोध करना चाहिए।
चूंकि अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र है इसलिए सारी पाबंदियां मुसलमानों पर ही हैं। तालिबान का अपना धार्मिक कानून है जो सभी पर लागू होता है। तालिबान की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अमरीका की बमवर्षा का भी कोई असर नहीं हुआ। तालिबान के लड़ाके पूरी ताकत से राजधानी काबुल की ओर बढ़ रहे हैं। चीन और रूस के संयुक्त युद्धाभ्यास का भी तालिबान पर कोई असर नहीं पड़ा है। पाकिस्तान तालिबानियों को पहले ही मदद कर रहा है, इसलिए अफगानिस्तान के हालातों का सबसे ज्यादा बुरा असर भारत पर पड़ेगा। तालिबान के लड़ाके अपने ही मुस्लिम समुदाय पर कितना कहर बरपाते हैं, इसके बारे में भारत के मुस्लिम नेता अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे नेताओं को यह भी पता है कि अफगानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं को किस तरह प्रताड़ित किया जा रहा है, लेकिन भारत के अधिकांश मुस्लिम नेता तालिबान की आलोचना से बच रहे हैं। ये वो ही नेता है जो छोटी छोटी बातों पर भारत में हंगामा खड़ा करते हैं। सवाल हिन्दू मुसलमान का नहीं है, सवाल मानव जाति का है।
क्या मौजूदा दौर में तालिबान के कानून के अनुसार जीवन व्यतीत किया जा सकता है? हालांकि सीमा पर भारतीय फौज मौजूद हैं, लेकिन भारत के अंदर भी तालिबान की विचारधारा के समर्थक हैं। यदि अफगानिस्तान पर तालिबान विचारधारा कब्जा करती है तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। भारत में करीब 23 करोड़ मुसलमान रह रहे हैं। अब समय आ गया है, जब सभी को मिलकर तालिबानी सोच का विरोध करना चाहिए।