भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हुए संघर्ष और चुनौतियों में कई गुमनाम वैज्ञानिक तथा विज्ञान संचारक भी शामिल थे। उन्हें ब्रिटिश सत्ता द्वारा भेदभाव और उपेक्षा का सामना करना पड़ा। उन तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, हमारे वैज्ञानिक तथा विज्ञान संचारक राष्ट्र और समाज के विकास के लिए विज्ञान के उपयोग के साथ-साथ विज्ञान का संचार भी करते रहे। “भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और विज्ञान विषय पर विज्ञान संचारकों का यह विशाल सम्मेलन” 20-21 अक्टूबर 2021 को आयोजित किया जाएगा। यह सम्मेलन विज्ञान प्रसार (भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग), सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान तथा विज्ञान भारती (विभा) का एक संयुक्त प्रयास है। आजादी का अमृत महोत्सव (भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का उत्सव) इस सम्मेलन के आयोजन की मुख्य प्रेरणा है। वर्ष भर चलने वाले विज्ञान समारोह में विभिन्न स्तरों पर प्रदर्शनियों, सम्मेलनों, प्रतियोगिताओं, विज्ञान फिल्मों, पोस्टरों, विज्ञान यात्राओं का आयोजन तथा प्रस्तुतियों के माध्यम से चर्चाएं होंगी। राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विशाल सम्मेलन में 4000 से अधिक विज्ञान संचारक शामिल होंगे, जो मुख्य संदेश को समाज के जमीनी स्तर तक पहुंचाएंगे। इसका प्रमुख उद्देश्य स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वैज्ञानिकों के योगदान, उनके संघर्षों और उपलब्धियों के बारे में समाज को जानकारी देना है।
इस विशाल सम्मेलन का पूर्वावलोकन कार्यक्रम 11 और 12 अगस्त 2021 को सीएसआईआर-राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला सभागार, नई दिल्ली में हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया था।
11 अगस्त 2021 को विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक श्री निमिश कपूर ने स्वतंत्रता से पहले के विज्ञान के इतिहास और राष्ट्र निर्माण में वैज्ञानिकों तथा विज्ञान संचारकों की महत्वपूर्ण भूमिका का एक स्नैपशॉट प्रस्तुत किया।
मंच पर उपस्थित गणमान्य व्यक्ति (बाएं से दाएं): श्री निमिश कपूर, प्रो. रंजना अग्रवाल, श्री जयंत सहस्रबुद्धे, डॉ. शेखर सी. मंडे, प्रो. संजय द्विवेदी, श्रीमती किरण चोपड़ा और डॉ. अरविंद सी. रानाडे
विभा के राष्ट्रीय आयोजन सचिव श्री जयंत सहस्रबुद्धे ने अमृत महोत्सव के आयोजन के मुख्य मूल विचारों को साझा करते हुए कहा कि, “हमें अपने समारोहों को केवल उन स्वतंत्रता सेनानियों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया, बल्कि हमें उन महान वैज्ञानिकों को भी याद रखने की आवश्यकता है, जो विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी अपनी वैज्ञानिक विचारधारा के लिए डटकर खड़े रहे।” 1757 में प्लासी के युद्ध का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि, अंग्रेजों ने 1818 में राजा पेशवा को हराने से पहले 1767 में वैज्ञानिक तरीके से भारत का सर्वेक्षण किया था। उन्होंने डॉ. महेंद्र लाल सरकार के योगदान पर भी प्रकाश डाला, जिन्होंने भारत में पहला वैज्ञानिक संघ स्थापित किया था। श्री जयंत सहस्रबुद्धे ने रासायनिक उद्योग स्थापित करने के लिए जाने जाने वाले आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय का ज़िक्र किया और उन्होंने जगदीश चंद्र बोस को भी याद किया, जिन्होंने कम वेतन के खिलाफ अंग्रेजों का विरोध किया था। श्री जयंत ने कहा कि, जगदीश चंद्र बोस पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने अधिकार के लिए ‘सत्याग्रह’ किया था।
महानिदेशक, सीएसआईआर, डॉ. शेखर सी. मंडे
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मंडे इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि, प्रत्येक भारतीय नागरिक को भारत के संविधान 51 (एच) में वर्णित प्रावधान के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।
सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर) की निदेशक और आजादी का अमृत महोत्सव की राष्ट्रीय संयोजक प्रोफेसर रंजना अग्रवाल ने विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए समारोहों के साल भर के कैलेंडर को सूचीबद्ध किया। इन कार्यक्रमों में शामिल हैं; 16-18 अगस्त को भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन, 11-12 नवंबर को स्कूलों और कॉलेजों के लिए शिक्षक कांग्रेस, 12 जनवरी को आईआईटी, आईआईएम, यूजीसी, एआईसीटीई और अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के कुलपतियों तथा निदेशकों के लिए अकादमिक प्रमुखों का सम्मेलन, जेएनयू, विभा और एनआईएसपीआर द्वारा 28 फरवरी को विश्व विज्ञान दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, विज्ञान यात्रा, ऑडियो-विजुअल और पोस्टर प्रदर्शित करने के लिए वाहनों पर प्रदर्शनी, विज्ञान फिल्म महोत्सव, वास्तुकार मॉडल, साहित्य मेला, आदि।
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक प्रोफेसर रंजना अग्रवाल
विज्ञान भारती के राष्ट्रीय आयोजन सचिव श्री जयंत सहस्रबुद्धे
इस विशेष अवसर पर विभिन्न भारतीय भाषाओं में समाचार पत्रों के विशेष अंक; हिंदी: ड्रीम 2047, अंग्रेजी: ड्रीम 2047, बंगाली: बिज्ञान कथा, असमिया: संधान, तमिल: अरिवियाल पलागई, कन्नड़: कुतुहल्ली, तेलगु: विज्ञान वाणी, मैथिली: विज्ञान रत्नाकर और उर्दू: ताजसस जारी किए गए।
गणमान्य व्यक्तियों द्वारा विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं का विमोचन
भारतीय जनसंचार संस्थान के निदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी
भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के निदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने पीसी रे की जीवन शैली ‘सादा जीवन और वैज्ञानिक सोच’ पर बल दिया और केवल कमाई न करके समुदाय के कल्याण के लिए विज्ञान के उपयोग पर विशेष जोर दिया। उन्होंने चौधरी चरण सिंह के नारे “जय जवान, जय किसान” का भी उल्लेख किया, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान” के रूप में संशोधित किया गया और हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा इसे एक नया रूप “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान” दिया गया है, जो वर्तमान परिदृश्य में काफी प्रासंगिक और उपयुक्त नारा है।
हिंदी समाचार पत्र पंजाब केसरी की निदेशक सुश्री किरण चोपड़ा ने प्रत्येक शुक्रवार को विज्ञान लेखों एवं समाचारों के लिए एक स्थान निर्धारित करने की पेशकश की। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रक के माध्यम से सूचना प्रसारित करने में विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका पर प्रकाश डाला, जिसने बाद में एक समाचार पत्र का रूप ले लिया था।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रोफेसर के.जी. सुरेश
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के जी सुरेश ने स्वतंत्रता संग्राम में आम जनता की मानसिकता को बदलने के लिए उत्प्रेरक की भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिकों के योगदान पर एक संग्रह की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि, वैज्ञानिकों के योगदान का संदेश वर्तमान समय के आकर्षक प्रारूपों जैसे कॉमिक और एनीमेशन के माध्यम से युवा पीढ़ी को साझा किया जाना चाहिए। प्रोफेसर सुरेश वर्चुअल माध्यम से इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के महानिदेशक और विज्ञान भारती के राष्ट्रीय सचिव श्री ओंकार राय ने कहा कि, हम तब तक आत्मनिर्भर नहीं बन सकते जब तक हमारे पास आत्म-सम्मान नहीं है और इस तरह के सम्मेलन से वैज्ञानिकों तथा विज्ञान संचारकों के योगदान के प्रति जनता में आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास एवं गर्व की भावना उत्पन्न हो सकती है।
इस कार्यक्रम के अंत में विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डॉ. अरविंद सी. रानाडे ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस पूर्वावलोकन कार्यक्रम में लगभग 70 लोगों ने व्यक्तिगत रूप से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए भाग लिया और सैकड़ों विज्ञान प्रेमियों ने वर्चुअल माध्यम से इस कार्यक्रम को देखा।
एमजी/एएम/एन/डीवी