मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। हम सबको पता है आज मेजर ध्यानचंद जी की जन्म जयंती है। और हमारा देश उनकी स्मृति में इसे राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता भी है। मैं सोच रहा था कि शायद, इस समय मेजर ध्यानचंद जी की आत्मा जहां भी होगी, बहुत ही प्रसन्नता का अनुभव करती होगी। क्योंकि दुनिया में भारत की हॉकी का डंका बजाने का काम ध्यानचंद जी की हॉकी ने किया था। और चार दशक बाद, क़रीब-क़रीब 41 साल के बाद, भारत के नौजवानों ने, बेटे और बेटियों ने हॉकी के अन्दर फिर से एक बार जान भर दी। और कितने ही पदक क्यों न मिल जाएं, लेकिन जब तक हॉकी में पदक नहीं मिलता भारत का कोई भी नागरिक विजय का आनंद नहीं ले सकता है और इस बार ओलंपिक में हॉकी का पदक मिला, चार दशक के बाद मिला। आप कल्पना कर सकते हैं मेजर ध्यानचंद जी के दिल पर, उनकी आत्मा पर, वो जहां होंगे, वहां, कितनी प्रसन्नता होती होगी और ध्यानचंद जी का पूरा जीवन खेल को समर्पित था और इसलिए आज, जब हमें देश के नौजवानों में हमारे बेटे-बेटियों में, खेल के प्रति जो आकर्षण नजर आ रहा है। माता-पिता को भी बच्चे अगर खेल में आगे जा रहे हैं तो खुशी हो रही है, ये जो ललक दिख रही है न मैं समझता हूँ, यही मेजर ध्यानचंद जी को बहुत बड़ी श्रद्धांजलि है।
साथियो, जब खेल-कूद की बात होती है न, तो स्वाभाविक है हमारे सामने पूरी युवा पीढ़ी नजर आती है। और जब युवा पीढ़ी की तरफ गौर से देखते हैं कितना बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। युवा का मन बदल चुका है। और आज का युवा मन घिसे-पिटे पुराने तौर तरीकों से कुछ नया करना चाहता है, हटकर के करना चाहता है। आज का युवा मन बने बनाए रास्तों पर चलना नहीं चाहता है। वो नए रास्ते बनाना चाहता है। unknown जगह पर कदम रखना चाहता है। मंजिल भी नयी, लक्ष्य भी नए, राह भी नयी और चाह भी नयी, अरे एक बार मन में ठान लेता हैं न युवा, जी-जान से जुट जाता है। दिन-रात मेहनत कर रहा है। हम देखते हैं, अभी कुछ समय पहले ही, भारत ने, अपने Space Sector को open किया और देखते ही देखते युवा पीढ़ी ने उस मौके को पकड़ लिया और इसका लाभ उठाने के लिए कॉलेजों के students, university, private sector में काम करने वाले नौजवान बढ़-चढ़ करके आगे आए हैं और मुझे पक्का भरोसा है आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे satellites की होगी, जो हमारे युवाओं ने, हमारे छात्रों ने, हमारे college ने, हमारी universities ने, lab में काम करने वाले students ने काम किया होगा।
इसी तरह आज जहां भी देखो, किसी भी परिवार में जाओ, कितना ही संपन्न परिवार हो, पढ़े-लिखे परिवार हो, लेकिन अगर परिवार में नौजवान से बात करो तो वो क्या कहता है वो अपने पारिवारिक जो परम्पराओं से हटकर के कहता है मैं तो start-up करूंगा, start-ups में चला जाऊँगा। यानी risk लेने के लिए उसका मन उछल रहा है। आज छोटे-छोटे शहरों में भी start-up culture का विस्तार हो रहा है और मैं उसमें उज्जवल भविष्य के संकेत देख रहा हूँ। अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश में खिलौनों की चर्चा हो रही थी। देखते ही देखते जब हमारे युवाओं के ध्यान में ये विषय आया उन्होंने भी मन में ठान लिया कि दुनिया में भारत के खिलौनों की पहचान कैसे बने। और नए-नए प्रयोग कर रहे हैं और दुनिया में खिलौनों का बहुत बड़ा market है, 6-7 लाख करोड़ का market है। आज भारत का हिस्सा बहुत कम है। लेकिन खिलौने कैसे बनाना, खिलौने की विविधता क्या हो, खिलौनों में technology क्या हो, child psychology के अनुरूप खिलौने कैसे हो। आज हमारे देश का युवा उसकी ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है, कुछ contribute करना चाहता है। साथियो एक और बात, जो मन को खुशियों से भर भी देती है और विश्वास को और मजबूत भी करती है। और वो क्या है, कभी आपने mark किया है। आमतौर पर हमारे यहाँ स्वभाव बन चुका था – होती है, चलो यार चलता है, लेकिन मैं देख रहा हूँ, मेरे देश का युवा मन अब सर्वश्रेष्ठ की तरफ अपने आपको केन्द्रित कर रहा है। सर्वोत्तम करना चाहता है, सर्वोत्तम तरीके से करना चाहता है। ये भी राष्ट्र की बहुत बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा।
साथियो, इस बार Olympic ने बहुत बड़ा प्रभाव पैदा किया है। Olympic के खेल पूरे हुए अभी paralympics चल रहा है। देश को हमारे इस खेल जगत में जो कुछ भी हुआ, विश्व की तुलना में भले कम होगा, लेकिन विश्वास भरने के लिए तो बहुत कुछ हुआ। आज युवा सिर्फ sports की तरफ देख ही रहा ऐसा नहीं है, लेकिन वह उससे जुड़ी संभावनाओं की भी ओर देख रहा है। उसके पूरे eco system को बहुत बारीकी से देख रहा है, उसके सामर्थ्य को समझ रहा है और किसी न किसी रूप में खुद को जोड़ना भी चाहता है। अब वो conventional चीज़ों से आगे जाकर new disciplines को अपना रहा है। और मेरे देशवासियो, जब इतना momentum आया है, हर परिवार में खेल की चर्चा शुरू हुई है। आप ही बताइये मुझे, क्या ये momentum को अब, थमने देना चाहिये, रुकने देना चाहिये। जी नहीं। आप भी मेरी तरह ही सोचते होंगे। अब देश में खेल, खेल-कूद, sports, sportsman spirit अब रुकना नहीं है। इस momentum को पारिवारिक जीवन में, सामाजिक जीवन में, राष्ट्र जीवन में स्थायी बनाना है – ऊर्जा से भर देना है, निरन्तर नयी ऊर्जा से भरना है। घर हो, बाहर हो, गाँव हो, शहर हो, हमारे खेल के मैदान भरे हुए होने चाहिये सब खेलें-सब खिलें और आपको याद है न मैंने लाल किले से कहा था – “सबका प्रयास” – जी हाँ, सबका प्रयास। सबके प्रयास से ही भारत खेलों में वो ऊंचाई प्राप्त कर सकेगा जिसका वो हकदार है। मेजर ध्यानचन्द जी जैसे लोगों ने जो राह बतायी है, उसमें आगे बढ़ना हमारी जिम्मेवारी है। वर्षों बाद देश में ऐसा कालखंड आया है कि खेलों के प्रति परिवार हो, समाज हो, राज्य हो, राष्ट्र हो – एक मन से सब लोग जुड़ रहे हैं।
मेरे प्यारे नौजवानों, हमें, इस अवसर का फायदा उठाते हुए अलग-अलग प्रकार के sports में महारत भी हासिल करनी चाहिए। गाँव-गाँव खेलों की स्पर्धाएँ निरंतर चलती रहनी चाहिये। स्पर्धा में से ही खेल विस्तार होता है, खेल विकास होता है, खिलाड़ी भी उसी में से निकलते हैं। आईये, हम सभी देशवासी इस momentum को जितना आगे बढ़ा सकते हैं, जितना योगदान हम दे सकते हैं, ‘सबका प्रयास’ इस मंत्र से साकार करके दिखाएँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, कल जन्माष्टमी का महापर्व भी है। जन्माष्टमी का ये पर्व यानी, भगवान श्री कृष्ण के जन्म का पर्व। हम भगवान के सब स्वरूपों से परिचित हैं, नटखट कन्हैया से ले करके विराट रूप धारण करने वाले कृष्ण तक, शास्त्र सामर्थ्य से ले करके शस्त्र सामर्थ्य वाले कृष्ण तक। कला हो, सौन्दर्य हो, माधुर्य हो, कहाँ-कहाँ कृष्ण है। लेकिन ये बातें मैं इसलिए कर रहा हूँ कि जन्माष्टमी से कुछ दिन पूर्व, मैं एक ऐसे दिलचस्प अनुभव से गुजरा हूँ तो मेरा मन करता है ये बातें मैं आपसे करूँ। आपको याद होगा, इस महीने की 20 तारीख को भगवान सोमनाथ मंदिर से जुड़े निर्माण कार्यों का लोकार्पण किया गया है। सोमनाथ मंदिर से 3-4 किलोमीटर दूरी पर ही भालका तीर्थ है, ये भालका तीर्थ वो है जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर अपने अंतिम पल बिताये थे। एक प्रकार से इस लोक की उनकी लीलाओं का वहाँ समापन हुआ था। सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा उस सारे क्षेत्र में विकास के बहुत सारे काम चल रहे हैं। मैं भालका तीर्थ और वहाँ हो रहे कार्यों के बारे में सोच ही रहा था कि मेरी नज़र, एक सुन्दर सी Art-book पर पड़ी। यह किताब मेरे आवास के बाहर कोई मेरे लिए छोड़कर गया था। इसमें भगवान श्री कृष्ण के अनेकों रूप, अनेकों भव्य तस्वीरें थी। बड़ी मोहक तस्वीरें थी और बड़ी meaningful तस्वीरें थी। मैंने किताब के पन्ने पलटना शुरू किया, तो मेरी जिज्ञासा जरा और बढ़ गई। जब मैंने इस किताब और उन सारे चित्रों को देखा और उस पर मेरे लिए एक सन्देश लिखा और तो जो वो पढ़ा तो मेरा मन कर गया कि उनसे मैं मिलूँ। जो ये किताब मेरे घर के बाहर छोड़ के चले गए है मुझे उनको मिलना चाहिए। तो मेरी ऑफिस ने उनके साथ संपर्क किया। दूसरे ही दिन उनको मिलने के लिए बुलाया और मेरी जिज्ञासा इतनी थी art-book को देख कर के, श्री कृष्ण के अलग-अलग रूपों को देख करके। इसी जिज्ञासा में मेरी मुलाकात हुई जदुरानी दासी जी से। वे American है, जन्म America में हुआ, लालन-पालन America में हुआ, जदुरानी दासी जी ISKCON से जुड़ी हैं, हरे कृष्णा movement से जुड़ी हुई हैं और उनकी एक बहुत बड़ी विशेषता है भक्ति arts में वो निपुण है। आप जानते हैं अभी दो दिन बाद ही एक सितम्बर को ISKCON के संस्थापक श्रील प्रभुपाद स्वामी जी की 125वीं जयंती है। जदुरानी दासी जी इसी सिलसिले में भारत आई थीं। मेरे सामने बड़ा सवाल ये था कि जिनका जन्म अमेरिका में हुआ, जो भारतीय भावों से इतना दूर रहीं, वो आखिर कैसे भगवान श्रीकृष्ण के इतने मोहक चित्र बना लेती हैं। मेरी उनसे लंबी बात हुई थी लेकिन मैं आपको उसका कुछ हिस्सा सुनाना चाहता हूँ।
PM sir : Jadurani Ji, Hare Krishna!
I have read a little about Bhakti Art but tell our listeners more about it. Your passion and interest towards it is great.
Jadurani Ji : So, bhakti art we have one article in the bhakti art illuminations which explains how this art is not coming from the mind or imagination but it is from the ancient Vedic scriptures like Bhram Sanhita. वें ओंकाराय पतितं स्क्लितं सिकंद, from The Goswami’s of Vrindavan, from the Lord Brahma himself. ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्द विग्रह: how He carries the flute, how all of his senses can act for any other sense and Srimad bhagwatam (TCR 9.09) बर्हापींड नटवरवपुः कर्णयो: कर्णिकारं everything, He wears a karnika flower on his ear, He makes the impression of His Lotus feet all over the land of Vrindavan, the cow herds voicing of his Glories, His flute attracts the hearts and minds of all fortunate beings. So everything is from ancient Vedic scriptures and the power of these scriptures which are coming from transcendental personalities and the pure devotees who are bringing it the art has their power and that’s why its transformational, it is not my power at all.
PM Sir: Jadurani ji, I have different type of question for you. Since 1966 in a way and from 1976 physically you have been associated with India for long, will you please tell me what does India mean to you?
Jadurani Ji: Prime minister ji, India means everything to me. I was mentioning I think to the honourable president a few days ago that India has come up so much in technical advancement and following the west very well with Twitter and Instagram and iPhones and Big buildings and so much facility but I know that, that’s not the real glory of India. What makes India glorious is the fact that Krishna himself the avatari appeared here and all the avatars appeared here, Lord Shiva appeared here, Lord Ram appeared here, all the holy rivers are here, all the holy places of Vaishnav culture are here and so India especially Vrindavan is the most important place in the universe, Vrindavan is the source of all the Vaikunth planets, the source of Dwarika, the source of the whole material creation, so I love India.
PM Sir: Thank You Jadurani Ji. Hare Krishna!
साथियो, दुनिया के लोग जब आज भारतीय अध्यात्म और दर्शन के बारे में इतना कुछ सोचते हैं, तो हमारी भी ज़िम्मेदारी है कि हम अपनी इन महान परम्पराओं को आगे लेकर जाएँ। जो कालबाह्यी है उसे छोड़ना ही है लेकिन जो कालातीत है उसे आगे भी ले जाना है। हम अपने पर्व मनाएँ, उसकी वैज्ञानिकता को समझे, उसके पीछे के अर्थ को समझे। इतना ही नहीं हर पर्व में कोई न कोई सन्देश है, कोई-न-कोई संस्कार है। हमें इसे जानना भी है, जीना भी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में उसे आगे बढ़ाना भी है। मैं एक बार फिर सभी देशवासियों को जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, इस कोरोना कालखंड में स्वच्छता के विषय में मुझे जितनी बातें करनी चाहिए थी लगता है शायद उसमें कुछ कमी आ गई थी। मुझे भी लगता है कि स्वच्छता के अभियान को हमें रत्ती भर भी ओझल नहीं होने देना है। राष्ट्र निर्माण के लिए सबका प्रयास कैसे सबका विकास करता है इसके उदाहरण हमें प्रेरणा भी देते हैं और कुछ करने के लिए एक नई ऊर्जा भर देते हैं, नया विश्वास भर देते हैं, हमारे संकल्प में जान फूँक देते हैं। हम ये भलीभांति जानते हैं कि जब भी स्वच्छ भारत अभियान की बात आती है तो इंदौर का नाम आता ही आता है क्योंकि इंदौर ने स्वच्छता के संबंध में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है और इंदौर के नागरिक इसके अभिनन्दन के अधिकारी भी है। हमारा ये इंदौर कई वर्षों से ‘स्वच्छ भारत रैंकिंग’ में पहले नम्बर पर बना हुआ है। अब इंदौर के लोग स्वच्छ भारत के इस रैंकिंग से संतोष पा कर के बैठना नहीं चाहते हैं वे आगे बढ़ना चाहते हैं, कुछ नया करना चाहते हैं। और उन्होंने क्या मन में ठान ली है, उन्होंने ‘Water Plus City’, बनाए रखने के लिए जी जान से जुटे हुए है। ‘Water Plus City’ यानी ऐसा शहर जहाँ बिना treatment के कोई भी सीवेज किसी सार्वजनिक जल स्त्रोत में नहीं डाला जाता। यहाँ के नागरिकों ने खुद आगे आकर अपनी नालियों को सीवर लाइन से जोड़ा है। स्वच्छता अभियान भी चलाया है और इस वजह से सरस्वती और कान्ह नदियों में गिरने वाला गन्दा पानी भी काफी कम हुआ है और सुधार नज़र आ रहा है। आज जब हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो हमें ये याद रखना है कि स्वच्छ भारत अभियान के संकल्प को हमें कभी भी मंद नहीं पड़ने देना है। हमारे देश में जितने ज्यादा शहर ‘Water Plus City’ होंगे उतना ही स्वच्छता भी बढ़ेगी, हमारी नदियाँ भी साफ होंगी और पानी बचाने की एक मानवीय जिम्मेवारी निभाने के संस्कार भी होंगे ।
साथियो, मेरे सामने एक उदाहरण बिहार के मधुबनी से आया है। मधुबनी में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और वहाँ के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र ने मिलकर के एक अच्छा प्रयास किया है। इसका लाभ किसानों को तो हो ही रहा है, इससे स्वच्छ भारत अभियान को भी नई ताकत मिल रही है। विश्वविद्यालय की इस पहल का नाम है – “सुखेत मॉडल” सुखेत मॉडल का मकसद है गाँवों में प्रदूषण को कम करना। इस मॉडल के तहत गाँव के किसानों से गोबर और खेतों–घरों से निकलने वाला अन्य कचरा इकट्ठा किया जाता है और बदले में गाँव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे दिये जाते हैं। जो कचरा गाँव से एकत्रित होता है उसके निपटारे के लिए vermi compost बनाने का भी काम किया जा रहा है। यानी सुखेत मॉडल के चार लाभ तो सीधे-सीधे नजर आते हैं। एक तो गाँव को प्रदूषण से मुक्ति, दूसरा गाँव को गन्दगी से मुक्ति, तीसरा गाँव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे और चौथा गाँव के किसानों को जैविक खाद। आप सोचिए, इस तरह के प्रयास हमारे गाँवों की शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। यही तो आत्मनिर्भरता का विषय है। मैं देश की प्रत्येक पंचायत से कहूंगा कि ऐसा कुछ करने का वो भी अपने यहाँ जरुर सोचें। और साथियो, जब हम एक लक्ष्य लेकर निकल पड़ते हैं न तो नतीजों का मिलना निश्चित होता है। अब देखिये न हमारे तमिलनाडु में शिवगंगा जिले की कान्जीरंगाल पंचायत। देखिये इस छोटी सी पंचायत ने क्या किया, यहाँ पर आपको वेस्ट से वेल्थ का एक और मॉडल देखने को मिलेगा। यहाँ ग्राम पंचायत ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर कचरे से बिजली बनाने का एक लोकल प्रोजेक्ट अपने गाँव में लगा दिया है। पूरे गाँव से कचरा इकट्ठा होता है, उससे बिजली बनती है और बचे हुए products को कीटनाशक के रूप में बेच भी दिया जाता है। गाँव के इस पॉवर प्लांट की क्षमता प्रतिदिन दो टन कचरे के निस्तारण की है। इससे बनने वाली बिजली गाँव की streetlights और दूसरी जरूरतों में उपयोग हो रही है। इससे पंचायत का पैसा तो बच ही रहा है वो पैसा विकास के दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जा रहा है। अब मुझे बताइये, तमिलनाडु के शिवगंगा जिले की एक छोटी सी पंचायत हम सभी देशवासियों को कुछ करने की प्रेरणा देती है कि नहीं देती है। कमाल ही किया है न इन्होंने।
मेरे प्यारे देशवासियो,
‘मन की बात’ अब भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रही है। दुनिया के अलग-अलग कोने में भी ‘मन की बात’ की चर्चा होती है। और विदेशों में रहने वाले हमारे भारतीय समुदाय के लोग हैं वे भी मुझे बहुत सी नई-नई जानकारियाँ देते रहते हैं। और मुझे भी कभी-कभी ‘मन की बात’ में विदेशों में जो अनोखे कार्यक्रम चलते है उसकी बातें आपके साथ शेयर करना अच्छा लगता है। आज भी मैं आपका कुछ ऐसे लोगों से परिचय कराउंगा लेकिन उससे पहले मैं आपको एक audio सुनाना चाहता हूँ। थोड़ा गौर से सुनिएगा।
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[रेडियो युनिटी नाईन्टी एफ्.एम्.-2]
नमोनमः सर्वेभ्यः। मम नाम गङ्गा। भवन्तः शृण्वन्तु रेडियो-युनिटी-नवति-एफ्.एम् –‘एकभारतं श्रेष्ठ-भारतम्’। अहम् एकतामूर्तेः मार्गदर्शिका एवं रेडियो-युनिटी-माध्यमे आर्.जे. अस्मि। अद्य संस्कृतदिनम् अस्ति। सर्वेभ्यः बहव्यः शुभकामनाः सन्ति| सरदार-वल्लभभाई-पटेलमहोदयः ‘लौहपुरुषः’ इत्युच्यते। २०१३-तमे वर्षे लौहसंग्रहस्य अभियानम् प्रारब्धम्। १३४-टन-परिमितस्य लौहस्य गलनं कृतम्। झारखण्डस्य एकः कृषकः मुद्गरस्य दानं कृतवान्। भवन्तः शृण्वन्तु रेडियो-युनिटी-नवति-एफ्.एम् –‘एकभारतं श्रेष्ठ-भारतम्’।
[रेडियो युनिटी नाईन्टी एफ्.एम्.-2]
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साथियो, भाषा तो आप समझ गए होंगे। ये radio पर संस्कृत में बात की जा रही है और जो बात कर रही हैं, वो हैं RJ गंगा। RJ गंगा, गुजरात के Radio Jockeys के group की एक सदस्य हैं। उनके और भी साथी हैं, जैसे RJ नीलम, RJ गुरु और RJ हेतल। ये सभी लोग मिलकर गुजरात में, केवड़िया में इस समय संस्कृत भाषा का मान बढ़ाने में जुटे हुए हैं। और आपको मालूम है न ये केवड़िया वही है जहाँ दुनिया का सबसे ऊँचा statue, हमारे देश का गौरव, Statue of Unity जहाँ पर है, उस केवड़िया की मैं बात कर रहा हूँ। और ये सब ऐसे Radio Jockeys हैं, जो एक साथ कई भूमिकाएं निभाते हैं। ये guide के रूप में भी अपनी सेवा देते हैं, और साथ-साथ Community Radio Initiative, Radio Unity 90 FM, उसका संचालन भी करते हैं। ये RJs अपने श्रोताओं से संस्कृत भाषा में बात करते हैं, उन्हें संस्कृत में जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
साथियो, हमारे यहाँ संस्कृत के बारे में कहा गया है –
अमृतम् संस्कृतम् मित्र, सरसम् सरलम् वचः।
एकता मूलकम् राष्ट्रे, ज्ञान विज्ञान पोषकम्।
अर्थात, हमारी संस्कृत भाषा सरस भी है, सरल भी है।
संस्कृत अपने विचारों, अपने साहित्य के माध्यम से ये ज्ञान विज्ञान और राष्ट्र की एकता का भी पोषण करती है, उसे मजबूत करती है। संस्कृत साहित्य में मानवता और ज्ञान का ऐसा ही दिव्य दर्शन है जो किसी को भी आकर्षित कर सकता है। हाल ही में, मुझे कई ऐसे लोगों के बारे में जानने को मिला, जो विदेशों में संस्कृत पढ़ाने का प्रेरक कार्य कर रहे हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं श्रीमान् रटगर कोर्टेनहॉर्स्ट, जो Ireland में संस्कृत के जाने-माने विद्वान और शिक्षक हैं और वहाँ के बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। इधर हमारे यहाँ पूरब में भारत और Thailand के बीच सांस्कृतिक संबंधों की मजबूती में संस्कृत भाषा की भी एक अहम भूमिका है। डॉ. चिरापत प्रपंडविद्या और डॉ. कुसुमा रक्षामणि, ये दोनों Thailand में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने थाई और संस्कृत भाषा में तुलनात्मक साहित्य की रचना भी की है। ऐसे ही एक प्रोफेसर है, श्रीमान बोरिस जाखरिन, Russia में Moscow State University में ये संस्कृत पढ़ाते हैं। उन्होंने कई शोध पत्र और पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उन्होंने कई पुस्तकों का संस्कृत से रुसी भाषा में अनुवाद भी किया है। इसी तरह Sydney Sanskrit School, Australia के उन प्रमुख संस्थानों में से एक है, जहाँ विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा पढ़ाई जाती है। ये school बच्चों के लिए Sanskrit Grammar Camp, संस्कृत नाटक और संस्कृत दिवस जैसे कार्यक्रमों का भी आयोजन भी करते हैं।
साथियो, हाल के दिनों में जो प्रयास हुए हैं, उनसे संस्कृत को लेकर एक नई जागरूकता आई है। अब समय है कि इस दिशा में हम अपने प्रयास और बढाएं। हमारी विरासत को संजोना, उसको संभालना, नई पीढ़ी को देना ये हम सब का कर्तव्य है और भावी पीढ़ियों का उस पर हक भी है। अब समय है इन कामों के लिए भी सबका प्रयास ज्यादा बढ़े। साथियो, अगर आप इस तरह के प्रयास में जुटे ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते हैं, ऐसी किसी जानकारी आपके पास है तो कृपया #CelebratingSanskrit के साथ social media पर उनसे संबंधित जानकारी जरुर साझा करें।
मेरे प्यारे देशवासियो, अगले कुछ दिनों में ही ‘विश्वकर्मा जयंती’ भी आने वाली है। भगवान विश्वकर्मा को हमारे यहाँ विश्व की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है। जो भी अपने कौशल्य से किसी वस्तु का निर्माण करता हैं, सृजन करता है, चाहे वो सिलाई-कढ़ाई हो, software हो या फिर satellite, ये सब भगवान विश्वकर्मा का प्रगटीकरण है। दुनिया में भले skill की पहचान आज नए तरीके से हो रही है, लेकिन हमारे ऋषियों ने तो हजारों सालों से skill और scale पर बल दिया है। उन्होंने skill को, हुनर को, कौशल को, आस्था से जोड़कर हमारे जीवन दर्शन का हिस्सा बना दिया है। हमारे वेदों ने भी कई सूक्त भगवान विश्वकर्मा को समर्पित किए हैं। सृष्टि की जितनी भी बड़ी रचनाएँ हैं, जो भी नए और बड़े काम हुए हैं, हमारे शास्त्रों में उनका श्रेय भगवान विश्वकर्मा को ही दिया गया है। ये एक तरह से इस बात का प्रतीक है कि संसार में जो कुछ भी development और innovation होता है, वो skills के जरिए ही होता है। भगवान विश्वकर्मा की जयंती और उनकी पूजा के पीछे यही भाव है। और हमारे शास्त्रों में ये भी कहा गया है –
विश्वस्य कृते यस्य कर्मव्यापारः सः विश्वकर्मा।
| अर्थात, जो सृष्टि और निर्माण से जुड़े सभी कर्म करता है वह विश्वकर्मा है। हमारे शास्त्रों की नजर में हमारे आस-पास निर्माण और सृजन में जुटे जितने भी skilled, हुनरमंद लोग हैं, वो भगवान विश्वकर्मा की विरासत हैं। इनके बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। आप सोचकर देखिए, आपके घर में बिजली की कुछ दिक्कत आ जाए और आपका कोई electrician ना मिले तो क्या होगा? आपके सामने कितनी बड़ी परेशानी आ जाएगी। हमारा जीवन ऐसे ही अनेकों skilled लोगों की वजह से चलता है। आप अपने आस-पास देखिए, लोहे का काम करने वाले हों, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले हों, लकड़ी का सामान बनाने वाले हो, बिजली का काम करने वाले हों, घरों में पेंट करने वाले हों, सफाईकर्मी हों, या फिर mobile-laptop का repair करने वाले ये सभी साथी अपनी skill की वजह से ही जाने जाते हैं। आधुनिक स्वरूप में ये भी विश्वकर्मा ही हैं। लेकिन साथियों इसका एक और पहलू भी है और वो कभी-कभी चिंता भी कराता है, जिस देश में, जहाँ की संस्कृति में, परंपरा में, सोच में, हुनर को, skill manpower को भगवान विश्वकर्मा के साथ जोड़ दिया गया हो, वहाँ स्थितियाँ कैसे बदल गई, एक समय, हमारे पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन, राष्ट्र जीवन पर कौशल्य का बहुत बड़ा प्रभाव रहता था। लेकिन गुलामी के लंबे कालखंड में हुनर को इस तरह का सम्मान देने वाली भावना धीरे-धीरे विस्मृत हो गई। सोच कुछ ऐसी बन गई कि हुनर आधारित कार्यों को छोटा समझा जाने लगा। और अब आज देखिए, पूरी दुनिया सबसे ज्यादा हुनर यानि skill पर ही बल दे रही है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी सिर्फ औपचारिकताओं से ही पूरी नहीं हुई। हमें हुनर को सम्मान देना होगा, हुनरमंद होने के लिए मेहनत करनी होगी। हुनरमंद होने का गर्व होना चाहिए। जब हम कुछ ना कुछ नया करें, कुछ Innovate करें, कुछ ऐसा सृजित करें जिससे समाज का हित हो, लोगों का जीवन आसान बने, तब हमारी विश्वकर्मा पूजा सार्थक होगी। आज दुनिया में skilled लोगों के लिए अवसरों की कमी नहीं है। प्रगति के कितने सारे रास्ते आज skills से तैयार हो रहे हैं। तो आइये, इस बार हम भगवान विश्वकर्मा की पूजा पर आस्था के साथ-साथ उनके संदेश को भी अपनाने का संकल्प करें। हमारी पूजा का भाव यही होना चाहिए कि हम skill के महत्व को समझेंगे, और skilled लोगों को, चाहे वो कोई भी काम करता हो, उन्हें पूरा सम्मान भी देंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो, ये समय आजादी के 75वें साल का है। इस साल तो हमें हर दिन नए संकल्प लेने हैं, नया सोचना है, और कुछ नया करने का अपना जज्बा बढ़ाना है। हमारा भारत जब आजादी के सौ साल पूरे करेगा, तब हमारे ये संकल्प ही उसकी सफलता की बुनियाद में नज़र आएंगे। इसलिए, हमें ये मौका जाने नहीं देना है। हमें इसमें अपना ज्यादा से ज्यादा योगदान देना है। और इन प्रयासों के बीच, हमें एक बात और याद रखनी है। दवाई भी, कड़ाई भी। देश में 62 करोड़ से ज्यादा vaccine की dose दी जा चुकी है लेकिन फिर भी हमें सावधानी रखनी है, सतर्कता रखनी है। और हाँ, हमेशा की तरह, जब भी आप कुछ नया करें, नया सोचें, तो उसमें मुझे भी जरूर शामिल करिएगा। मुझे आपके पत्र और messages का इंतज़ार रहेगा। इसी कामना के साथ, आप सभी को आने वाले पर्वों की एक बार फिर ढेरों बधाइयाँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।
नमस्कार !
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DS/SH/RSB/VK