आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत पीआईबी शिलांग ने ‘मेघालय के गुमनाम नायकों’ विषय पर वेबिनार आयोजित किया

पत्र सूचना कार्यालय शिलांग ने देश भर में मनाए जा रहे आजादी का अमृत महोत्सव के तहत आज ‘मेघालय के गुमनाम नायकों’ पर एक वर्चुअल चर्चा का आयोजन किया।

भारत के अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का उत्सव मनाने के साथ, चर्चा में स्वतंत्रता सेनानियों, इतिहासकारों, लेखकों और संबंधित लोगों के ब्रिटिश विरोधी भावना विकसित करने और स्वतंत्रता को अपनाने में प्रयासों को रेखांकित किया गया। आज के वेबिनार ने देश की आजादी की यादों को ताजा कर दिया और मेघालय के गुमनाम नायकों के सम्मान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर को भी व्यक्त किया।

वरिष्ठ पत्रकार और शिलांग प्रेस क्लब के अध्यक्ष, श्री डेविड लैटफ्लांग ने अपने स्वागत भाषण के साथ वेबिनार का शुभारंभ किया, जिसमें उन्होंने सत्र के वक्ताओं-एचओडी, इतिहास, नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू), प्रोफेसर सीए मावलोंग, प्रोफेसर एस लामारे, इतिहास विभाग, एनईएचयू और विंग कमांडर श्री रत्नाकर सिंह, पीआरओ, रक्षा, शिलांग

का परिचय दिया।

प्रो. (डॉ) मावलोंग ने खासी समुदाय के गुमनाम नायकों के स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों की चर्चा की। उन्होंने यू तिरोट सिंग, खासी हिल्स के महान स्वतंत्रता सेनानी, की बहादुरी के साथ शुरुआत की, जिन्होंने खासी की जमीन अपने नियंत्रण लेने के प्रयास के तहत युद्ध की घोषणा की और अंग्रेजों के खिलाफ लड़े।

उन्होंने खासी के स्वतंत्रता सेनानियों को सामने लाने के विभिन्न लेखकों और इतिहासकारों के प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि कैसे ये लेखक खासियों को सशक्त बनाने में सफल रहे और खासी कौन थे, वे इस बात को सामने लाने में सफल रहे।

उन्होंने प्रो. हेलेन गिरी का उल्लेख किया, जिनका काम ‘द खासी अंडर ब्रिटिश रूल’ (1824-1947) के नाम से दर्ज है। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों और लेखकों ने यू तिरोट सिंग और एंग्लो-खासी युद्ध पर काफी विस्तार से लिखा है। उन्होंने आगे कहा कि 1829 के युद्ध, खासी हिल्स के प्रमुखों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष पर बहुत कुछ लिखा गया है।

उन्होंने एक रुचिकर विषय – राष्ट्रवाद की भावना को प्रज्वलित करने में पाठकों की भूमिका पर सुस्पष्ट राय रखी। उन्होंने बताया कि कैसे खासी भाषा में भारतीय महाकाव्यों के अनुवाद ने देश के बाकी हिस्सों की संस्कृति और परंपरा के बारे में खासी लोगों को परिचित कराने में इतिहासकारों की मदद की।

उन्होंने यू सिब चरण रॉय, बाबू जीबन रॉय के सबसे बड़े पुत्र, ‘आधुनिक खासियों के जनक’ के प्रयासों का विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने उनके जीवन और कैसे वे अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने का माध्यम बन गए थे, के बारे में बताया। प्रो. मावलोंग ने मावखर में एक स्कूल का विशेष रूप से उल्लेख किया, जिसे वंचित खासी छात्रों को शिक्षित करने के लिए स्थापित किया गया था। उन्होंने संस्थान के पाठ्यक्रम से असहमति के बाद पहले प्रधानाध्यापक के रूप में सीमित पैसों में स्कूल चलाने के रॉय के प्रयासों को सामने रखा।

उन्होंने बताया कि उन्होंने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी समस्याएं बताई थीं। गांधी ने, इसके बदले में, अपने जवाब को ‘हरिजन’ में प्रकाशित किया था, हस्तक्षेप किया था और बाद में स्कूल को सही से चलाने के लिए अनुदान दिलाने में मदद की थी। उन्होंने 1939 में लाला लाजपत राय के शिलांग आने और स्कूल के लिए एक छोटी सी राशि देने का भी उल्लेख किया।

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प्रो. शोभन. एन. लामारे, इतिहास विभाग, उत्तर-पूर्वी हिल्स विश्वविद्यालय, जो अपने शोध और जयंतिया के जीवन व इतिहास से जुड़े कार्यों के लिए जाने जाते हैं, ने औपनिवेशिक सोच और जयंतिया के प्रतिरोध को समझने के प्रयास में जयंतियों के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में बताया।

प्रो. लामारे ने 22 मार्च, 1980 को जोवाई में ब्रिटिश कैंप पर हमले का उल्लेख किया, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध के पनपने का संकेत दे दिया था। मई के महीने तक रॉलेट ने कई कैदियों को चेरापूंजी भेज दिया था। वे दलोई, पटोर या वे लोग थे, जो लड़ाई में शामिल थे या वे लोग थे जो प्रतिरोध को सामने लाने में सक्रिय रूप से जुटे थे। उनमें से कुछ लोगों में रालियांग के पूर्व दलोई यू बनई; रैलियांग के पूर्व पटोर यू कैट; चांगपुंग के पूर्व दलोई यू स्कम; चांगपुंग के पूर्व दलोई यू चान, नोंगबाह के पूर्व पटोर यू इओंग; नर्तियांग के पूर्व दलोई यू मोन; नर्तियांग के यू लांग सुतंगा; नंगजंगी के पूर्व दलोई यू इओंग; सतपट्टोर के यू परबत, यू रिंबाई, यू ब्योंग सोंगलू शामिल थे।

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए नर्तियांग के दलोई ने यू कियांग नोंगबाह, एक सामान्य व्यक्ति को चुना और उनका स्वागत किया था। यू कियांग नांगबाह और उनके सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट यू चे रंगबाह ने यात्राएं की और लोगों को प्रेरित किया। यू कियांग नांगबाह के साथ काम करने वाले नेताओं में यू लोंग पाडु, यू स्वर सुतंगा, यू मोन रिंबाई, यू बैंग, यू बखेर, यू मुलोन माइंसो, यू किआंग सुले, यू कैट चांगपुंग और यू वो रियांग शामिल थे।

यू कियांग नांगबाह को फांसी दिए जाने के बाद यू मुलोन, म्यंसो के पूर्व दलोई और प्रमुख नेता ने आखिरी दम तक लड़ाई जारी रखने के अपने प्रण की घोषणा की थी। उन्हें यू कियांग नोंगबाह का उत्तराधिकारी माना जाता था। इस बीच 16 जनवरी 1863 को कैप्टन मॉर्टन ने रिंबाई के यू कैट के बेटे यू सा नर्तियांग को पकड़ लिया और उन पर मुकदमा चलाया। उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का दोषी पाया गया और उन्हें फांसी दे दी गई।

प्रो. लामारे ने 29 और 30 जनवरी 1863 को हुई घटनाओं का उल्लेख किया, जब जोवई के पास एक मुठभेड़ में 106 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को पकड़ लिया गया था और उनमें से बारह लोग मारे गए थे, इसके अलावा कई लोग घायल भी हुए थे। यह भी बताया गया था कि ब्रिटिश सेना से बचने के लिए मुंगोट नदी पार करने की कोशिश में कई महिलाएं और बच्चे डूब गए थे। सभी संघर्षों के बारे में यह बताया गया था कि इनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे और कभी-कभी हताहतों की संख्या बहुत ज्यादा थी।

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प्रो. लामारे ने यह भी उल्लेख किया कि 1 दिसंबर को, प्रतिरोध में भाग लेने वाले ज्यादातर जयंतिया को सुतंगा से पकड़ लिया गया था। 11 दिसंबर को यू कियांग भीन को पकड़ लिया गया था। सुतंगा के दलोई यू सावर एक मुठभेड़ में सैनिकों के साथ मारे गए थे। यू किआंग नोंगबाह के लेफ्टिनेंट यू चे रंगबाह, नोंगबाह के लोगों के साथ एक मुठभेड़ में मारे गए थे। 23 मार्च, 1864 को, आयुक्त हाउटन ने बंगाल सरकार को अपने संदेश में लिखा: “लोगों को बहुत कड़ी सजा दी गई है और विद्रोह के सभी रुझान खत्म हो गए हैं।”

प्रो. लामारे ने जयंतियों के कई गुमनाम नायकों के बारे में विस्तार से जानकारी दी, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

वरिष्ठ पत्रकार और शिलांग प्रेस क्लब के अध्यक्ष, श्री डेविड लैटफ्लांग ने अपने संबोधन में स्वतंत्रता संग्राम के ‘गुमनाम नायकों’ समेत स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान के बारे में जानकारी फैलाने के लिए वेबिनार आयोजित करने में प्रेस सूचना कार्यालय के प्रयासों की सराहना की।

उन्होंने सलाह दी कि सीखना, राज्य के स्कूलों और कॉलेजों में नियमित पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने यह भी राय दी कि वेबिनार के निष्कर्षों और बातचीत को, जिसमें वक्ताओं के सुझाव शामिल हैं, को राज्य के शिक्षा विभाग के साथ साझा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि गुमनाम नायकों की कहानी राज्य में नियमित पाठ्यक्रम का हिस्सा बन सके।

श्री एस एन प्रधान, अपर महानिदेशक, पूर्वोत्तर क्षेत्र, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि प्रेस सूचना ब्यूरो, वक्ताओं के सुझावों के साथ वेबिनार का विवरण राज्य सरकार के साथ साझा कर सकता है। उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने और भारत-प्रशांत क्षेत्र में देशों के साथ एक रणनीतिक संबंध विकसित करने के क्रम में पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) के आर्थिक विकास को मजबूत करना सरकार का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय पूर्वोत्तर राज्यों से गुमनाम नायकों की जानकारियां जुटाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोगों को उनके जीवन और कार्यों के बारे में पता चल सके।

विंग कमांडर श्री रत्नाकर सिंह, पीआरओ, रक्षा, शिलांग ने स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव के असवर पर संवादात्मक वेबिनार के सफलतापूर्वक आयोजन के लिए पत्र सूचना कार्यालय की टीम को बधाई दी।

मीडिया और संचार अधिकारी, पीआईबी शिलांग, श्री गोपाजीत दास ने आज के ‘मेघालय के गुमनाम नायक’ सत्र का संचालन किया।

 

 

 

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एमजी/एएम/आरकेएस