भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण प्रशिक्षण संस्थान ने अपनी 24×7 वेबसाइट शुरू की

खान मंत्रालय के तहत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की प्रशिक्षण एवं कौशल क्षमता निर्माण इकाई भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण प्रशिक्षण संस्थान (जीएसआईटीआई) हैदराबाद ने अपने हितधारकों के लिए पृथ्वी विज्ञान पर विभिन्न ऑनलाइन प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की चौबीसों घंटे उपलब्धता के तहत हाल ही में अपनी 24×7 वेबसाइट (https://training.gsiti.gsi.gov.in/) शुरू की है। यह पहल भारत सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान के अनुरूप है।

इस साइट का बीटा संस्करण, जिसे भू-विज्ञान समुदाय की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, उस पर 33 से अधिक रिकॉर्ड किए गए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम (164 व्याख्यान वीडियो) और पाठ्यक्रम समापन प्रमाण पत्र उपलब्ध हैं। इसके अलावा, जीएसआईटीआई की दिन-प्रतिदिन होने वाली गतिविधियां जैसे नई प्रशिक्षण घोषणाऐं और चल रहे कार्यक्रमों के नामांकित प्रतिभागियों की सूची नियमित रूप से इस वेबसाइट पर अपलोड की जाती है। इस वेबसाइट पर 12380 से अधिक प्रतिभागी पहले ही अपना पंजीकरण करा चुके हैं और इस संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली समृद्ध तकनीकी सामग्री से लाभान्वित हो रहे हैं।

प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण जिससे कौशल तथा दक्षता को बढ़ाया जाता है, उसे किसी संगठन के विकास के लिए मूल सिद्धांत माना जाता है। जीएसआई के नए पदाधिकारियों को इंडक्शन-लेवल ओरिएंटेशन प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना 1976 में की गई थी। पिछले 45 वर्षों में जीएसआईटीआई ने हैदराबाद, नागपुर, लखनऊ, कोलकाता, शिलांग, रायपुर, ज़वार (राजस्थान), चित्रदुर्ग (कर्नाटक) और कुजू (झारखंड) में स्थित जीएसआईटीआई के नौ (09) प्रशिक्षण स्थलों तक अपना विस्तार किया है। हैदराबाद केंद्र का अपना एक पूर्ण परिसर है और इसको अन्य सभी आठ केंद्रों के मुख्यालय के रूप में नामित किया गया है।

पृथ्वी विज्ञान और संगठन की प्राथमिकताओं में नवीनतम विकास तथा प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए, जीएसआईटीआई न केवल जीएसआई के भूवैज्ञानिकों को ही बल्कि राज्य भूविज्ञान और खान विभाग (डीजीएम), केंद्रीय संगठनों (जैसे एएमडी, एमईसीएल, आईबीएम, एनएमडीसी, सीएमपीडीआई), अनुसंधान संस्थानों (एनजीआरआई, डब्ल्यूआईएचजी, बीएसआईपी, जेएनएआरडीडीसी, एनएचपीसी), आईआईटी, एनआईटी और अन्य केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों के साथ-साथ देश के अन्य पृथ्वी विज्ञान संगठन के प्रतिभागियों को भी विभिन्न प्रकार के तकनीकी, प्रशासनिक एवं प्रबंधन प्रशिक्षण प्रदान करता है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा प्रायोजित भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आईटीईसी)/ अफ्रीकी देशों के लिए विशेष राष्ट्रमंडल सहायता (एससीएएपी) कार्यक्रमों के तहत अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिकों को भी संस्थान द्वारा नियमित रूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है। जीएसआईटीआई इसरो और ओएनजीसी के कार्यक्रम भी बार-बार आयोजित करता है।

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पिछले एक दशक (2010 से 2020) के दौरान जीएसआईटीआई ने अंतर्राष्ट्रीय समुदायों के 27902 प्रतिभागियों, डीजीएम, विश्वविद्यालय संकाय, और अनुसंधान विद्वानों के साथ-साथ जीएसआई के कर्मचारियों को विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान प्रदान करते हुए 1207 प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। 2020-21 में जीएसआईटीआई ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ई-प्रशिक्षण तथा मिश्रित (ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों) मोड का सहारा लिया और 1810 प्रशिक्षण दिनों में 21,112 प्रतिभागियों के लिए 194 प्रशिक्षण सत्र प्रदान किये। वर्चुअल माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान करने के कारण 504 शैक्षणिक संस्थानों के 14274 प्रशिक्षुओं ने भाग लिया; इनमें 1637 विभिन्न राज्यों से डीजीएम और अन्य केंद्रीय संगठनों जैसे एएमडी, एमईसीएल, आईबीएम से भी प्रशिक्षार्थी शामिल हुए। 551 प्रतिभागी विभिन्न राज्यों के डीजीएम से थे। इसी तरह, आईआईटी-आईएसएम से 790, अन्य आईआईटी से 531, बीएचयू से 778, एनआईटी से 168 और अन्य केंद्रीय तथा राज्य विश्वविद्यालयों से 12017 प्रशिक्षुओं को 2020-21 में जीएसआईटीआई के कार्यक्रमों से लाभान्वित किया गया। शेष 5201 प्रतिभागी जीएसआई के विभिन्न कार्यालयों से थे। 2021-22 में जीएसआईटीआई ने 134 प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरे किए हैं, जिससे 12500 से अधिक प्रतिभागियों को लाभ हुआ है, जिनमें से ज्यादातर ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे।

जीएसआईटीआई के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों को आम जनता तक पहुंचाने के अलावा, इस वेबसाइट का उद्देश्य भूविज्ञान के विषय और राष्ट्र निर्माण में इसके महत्व की ओर छात्र समुदाय का ध्यान आकर्षित करना है। भारत की आज़ादी के 75 वर्ष (आज़ादी का अमृत महोत्सव) के समारोह के एक भाग के रूप में, जीएसआईटीआई ने 6000 से अधिक प्रतिभागियों को लाभान्वित करने वाले यूजी/पीजी छात्रों के लिए 22 से अधिक ई-व्याख्यान/प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए हैं। इसी तरह, खान मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रम भुविसंवाद के तहत, शिक्षाविदों के साथ जीएसआई पेशेवरों की बातचीत की सुविधा प्रदान करते हुए, जीएसआईटीआई ने 27819 छात्रों/विद्वानों/संकाय सदस्यों के साथ सफलतापूर्वक चर्चा की और प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया है। पृथ्वी विज्ञान पर ज्ञान साझा करने तथा देश की तकनीकी व वैज्ञानिक क्षमता का निर्माण करने के अपने निरंतर प्रयासों में, जीएसआईटीआई आम नागरिकों से वेबसाइट पर जाने और उनसे अपनी जिज्ञासाओं का उत्तर ढूंढने का अनुरोध करता है।

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भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की स्थापना 1851 में मुख्य रूप से रेलवे के लिए कोयले के भंडार का पता लगाने के लिए की गई थी। इन वर्षों में, जीएसआई न केवल देश में विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक भू-विज्ञान की जानकारी के भंडार के रूप में विकसित हुआ है, बल्कि इसने अंतरराष्ट्रीय ख्याति के भू-वैज्ञानिक संगठन का दर्जा भी प्राप्त किया है। इसका मुख्य कार्य राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक सूचना और खनिज संसाधन मूल्यांकन के निर्माण एवं अद्यतन से संबंधित है। इन उद्देश्यों को जमीनी सर्वेक्षण, हवाई एवं समुद्री सर्वेक्षण, खनिज पूर्वेक्षण व जांच, बहु-विषयक भूवैज्ञानिक, भू-तकनीकी, भू-पर्यावरण और प्राकृतिक खतरों के अध्ययन, हिमनद विज्ञान, भूकंप विवर्तनिक अध्ययन तथा मौलिक अनुसंधान के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।

जीएसआई की मुख्य भूमिका में नीति निर्धारण निर्णयों, वाणिज्यिक एवं सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं पर ध्यान देने के साथ उद्देश्यपूर्ण, निष्पक्ष तथा अप-टू-डेट भूवैज्ञानिक विशेषज्ञता और सभी प्रकार की भू-वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करना शामिल है। जीएसआई भारत तथा इसके अपतटीय क्षेत्रों की सतह और उपसतह से प्राप्त सभी भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के व्यवस्थित प्रलेखन पर भी जोर देता है। संगठन भू-भौतिकीय और भू-रासायनिक तथा भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों सहित नवीनतम और सबसे अधिक लागत प्रभावी तकनीकों एवं कार्यप्रणाली का उपयोग करके ऐसा करता है।

सर्वेक्षण और मानचित्रण में जीएसआई की मुख्य क्षमता में वृद्धि, प्रबंधन, समन्वय तथा स्थानिक डेटाबेस (रिमोट सेंसिंग के माध्यम से हासिल किए गए सहित) के निरंतर उपयोग के माध्यम से हुई है। यह इस उद्देश्य के लिए एक ‘भंडार’ या ‘समाशोधन गृह’ के रूप में कार्य करता है और भू-सूचना विज्ञान क्षेत्र में अन्य हितधारकों के साथ सहयोग और सहकार्यता के माध्यम से भू-वैज्ञानिक सूचना तथा स्थानिक डेटा के प्रसार के लिए नवीनतम कंप्यूटर-आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करता है।

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