डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि देश में यद्यपि प्रतिभाशाली मानव संसाधनों की कोई कमी नहीं है, पर मुख्य चुनौती इसे नए प्रतिमान विकसित करने के लिए मुख्य धारा में लाना है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता का विश्वास अगली पीढ़ी तक जाएगा तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ विद्वानों को आकर्षित करने में मदद करेगा।
इस कार्यक्रम में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके सारस्वत, जबकि डीएसआईआर सचिव और सीएसआईआर के महानिदेशक और टीडीबी बोर्ड सदस्य डॉ. शेखर सी. मांडे, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की सचिव डीबीटी, श्रीमती रेणु स्वरूप, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी) के सचिव श्री राजेश कुमार पाठक, आईपी एंड टीएएफएस, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड में निदेशक श्री राजेश जैन और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा, पूर्व सचिव तथा प्रो. के. विजयराघवन, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, भारत सरकार ने वर्चुअल माध्यम से भाग लिया। डॉ कृष्णा एला, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, भारत बायोटेक तथा युवा उद्यमी सुश्री अक्षता कारी, सह-संस्थापक और सीओओ, कोको लैब ने भी व्यक्तिगत रूप से इस कार्यक्रम को संबोधित किया।
25 वर्षों की सफल यात्रा के लिए टीडीबी की भूमिका की सराहना करते हुए, डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री जी की नए भारत की कल्पना के अनुरूप ही अगले 25 वर्षों का रोडमैप भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, खगोल विज्ञान, डेटा विज्ञान, सौर ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन जैसे उभरते क्षेत्रों में विश्व नेता बनाने के लिए होना चाहिए। सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग क्लाइमेट चेंज मिटिगेशन टेक्नोलॉजीज और साइबर फिजिकल सिस्टम जैसे उभरते क्षेत्रों में विश्व नेता बनाने के लिए होना चाहिए। मंत्री महोदय ने इस अवसर पर टीडीबी पत्रिका का भी विमोचन किया।
अपने समापन भाषण में डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के हर क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है और प्रौद्योगिकी भारत के हर घर में प्रवेश कर चुकी है। उन्होंने कहा कि सच्ची सफलता का आकलन अधिकांश भारतीय नागरिकों को “ईज ऑफ लिविंग” का आनंद लेने में मदद करके किया जाएगा।
अपने संबोधन में, डॉ. वी के सारस्वत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत में अनुसंधान एवं विकास का पारिस्थितिकी तंत्र अब बदल गया है और अब अनुसंधान की व्यवहार्यता और उसके व्यावसायीकरण पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, भारत में 5,000 से अधिक स्टार्ट-अप काम कर रहे हैं, जिनमें से लगभग 50 महिला उद्यमियों के नेतृत्व में हैं। डॉ. सारस्वत ने कहा कि अब तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी भारतीय नवाचारों और भारत में अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं की स्थापना के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया है और यह एक स्वागत योग्य बदलाव है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप ने नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में अपनी महत्वपूर्ण के लिए टीडीबी के प्रयासों पर जोर दियाI जबकि डीएसआईआर सचिव और सीएसआईआर के महानिदेशक और टीडीबी बोर्ड के सदस्य डॉ. शेखर सी मांडे ने अब तक किए गए प्रयासों और पहलों के साथ ही भारत के भविष्य के लिए उनके महत्व को रेखांकित किया। डीएसटी के पूर्व सचिव प्रो आशुतोष शर्मा ने समाज के लाभ के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के नए और उभरते क्षेत्रों के दोहन में टीडीबी की भूमिका पर प्रकाश डाला।
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