उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज नेत्रदान पर मिथकों और झूठी मान्यताओं को दूर करने का आह्वान किया। उन्होंने लोगों में जागरूकता बढ़ाने लिए मशहूर हस्तियों और आइकनों को शामिल करके हर राज्य में स्थानीय भाषाओं में बड़े पैमाने पर मल्टीमीडिया अभियान शुरू करने का सुझाव दिया।
उपराष्ट्रपति ने 36वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े समारोह में बोलते हुए, डोनर कॉर्निया टिश्यू की मांग और आपूर्ति के बीच भारी अंतर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह दुःखद है कि प्रत्यारोपण के लिए डोनर कॉर्निया टिश्यू की कमी के कारण बहुत सारे लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है कि लोगों में नेत्रदान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए।
श्री नायडू ने कहा कि यह देखते हुए कि बहुत से लोग मिथकों और झूठी मान्यताओं के कारण अपने मृत परिवार के सदस्यों की आंखें दान करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। ऐसे में उन लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए कि उनकी आंखें दान करने के नेक कार्य से कॉर्नियल ब्लाइंड लोगों को देखने में मदद मिलेगी जिससे वे इस सुंदर दुनिया को फिर से देख पाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर हम सभी अपनी आंखें दान करने का संकल्प लें, तो हम कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे सभी रोगियों का इलाज कर सकते हैं। उन्होंने कहा, यह एक प्राप्त करने योग्य लक्ष्य है। इसलिए, हमें इसे पूरा करने के लिए अथक प्रयास करना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने डोनर टिश्यू की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटने के लिए एक संरचित नेत्र-बैंकिंग प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इसके लिए आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने, डोनर टिश्यू दान करने वाले को सुविधाजनक व्यवस्था प्रदान करने और समान वितरण प्रणाली सुनिश्चित करने पर जोर दिया।
यह दोहराते हुए कि ‘शेयर एंड केयर’ भारतीय दर्शन का मूल सिद्धांत है, उन्होंने कहा, “हमारी संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जहां शिबी और दधीचि जैसे राजाओं और ऋषियों ने अपने शरीर दान किए थे। ये उदाहरण हमारे समाज के मूल मूल्यों, आदर्शों और संस्कारों के इर्द-गिर्द निर्मित हैं।” उन्होंने लोगों को प्रेरित करने और अंगदान को बढ़ावा देने के लिए उन मूल्यों और कहानियों को आधुनिक संदर्भ में फिर से परिभाषित करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, “अंग दान करने से न केवल एक व्यक्ति को अधिक पूर्ण जीवन जीने में मदद मिलती है, बल्कि दूसरों के लिए समाज की भलाई के लिए काम करने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत होता है”।
श्री नायडू ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कहा कि महामारी के कारण कॉर्नियल पुनर्प्राप्ति पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण कॉर्नियल प्रत्यारोपण के लिए आवश्यक टिश्यू की कमी हो गई है और बैकलॉग मामले बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा कि टिश्यू उपलब्धता में संकट को दूर करने के लिए लंबे समय तक संरक्षण जैसे अभिनव उपाय और वैकल्पिक शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं पर विचार किया जाना चाहिए जिनमें डोनर टिश्यू की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कोविड-19 के बारे में हमारी समझ में सुधार हुआ है, ठीक उसी तरह से हमें नेत्र-बैंकिंग और टिश्यू पुनर्प्राप्ति के संबंध में दिशानिर्देशों को संशोधित करने की आवश्यकता है”।
मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और अन्य नेत्र संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए नेत्र देखभाल सुविधाओं को बढ़ाने का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि देशभर में रोगनिरोधी और उपचारात्मक नेत्र देखभाल को मजबूत करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति तैयार करने की तत्काल आवश्यकता है। यह सुनिश्चित किया जाए कि ये सेवाएं ग्रामीण क्षेत्रों, विशेष रूप से देश के दूरदराज के हिस्सों में उपलब्ध हो। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को व्यापक नेत्र देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार के प्रयासों को बढ़ाने में पंचायती राज संस्थानों, शहरी स्थानीय निकायों और गैर सरकारी संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए।
यह देखते हुए कि ग्रामीण आबादी का एक बड़ा वर्ग गुणवत्तापूर्ण नेत्र देखभाल से वंचित है, उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बहुत से लोग निजी अस्पतालों में इलाज का भारी-भरकम खर्च वहन नहीं कर सकते। इसलिए, हमें अपने सार्वजनिक क्षेत्र के नेत्र देखभाल अस्पतालों को गुणवत्तापूर्ण उपचार प्रदान करने के लिए नवीनतम तकनीकों से लैस करना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने पिछले पांच दशकों में कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से प्रभावित हजारों लोगों को फिर से देखने की शक्ति देकर सशक्त बनाने के लिए राष्ट्रीय नेत्र बैंक टीम की सराहना की।
इस वर्चुटल समारोह में प्रो. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, एम्स, नई दिल्ली, प्रो. जीवन एस टिटियाल, प्रमुख, आरपी सेंटर फॉर ऑप्थल्मिक साइंसेज, एम्स, नई दिल्ली, प्रो. राधिका टंडन, सह-अध्यक्ष, नेशनल आई बैंक, प्रो. नम्रता शर्मा, ऑफिसर इन चार्ज, राष्ट्रीय नेत्र बैंक, प्रो. एम. वनथी, ऑफिसर इन चार्ज, राष्ट्रीय नेत्र बैंक, डॉ. मनप्रीत कौर, सहायक प्रोफेसर, फैकल्टी और स्टाफ, एम्स के साथ डोनर परिवारों और गैर-सरकारी संगठनों और आई बैंकों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
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