आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में एक और महत्वपूर्ण प्रयास के अंतर्गत पेटेंट फाइलिंग और अभियोजन के लिए 80% कम शुल्क से संबंधित लाभों को शैक्षणिक संस्थानों तक भी बढ़ाया गया है । केंद्र ने इस संबंध में पेटेंट नियमों में संशोधन को अधिसूचित कर दिया है
ज्ञान अर्थव्यवस्था में नवाचार और रचनात्मकता को पोषित करने के महत्व को स्वीकार करते हुए भारत हाल के वर्षों में अपने बौद्धिक संपदा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है। नवाचार के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाने के लिए भारत सरकार का उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग उद्योग और शिक्षाविदों के बीच अधिक सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है। ऐसा शैक्षिक संस्थानों में किए गए अनुसंधान के व्यावसायीकरण को सुविधाजनक बनाकर ही किया जा सकता है।
यह संस्थान कई शोध गतिविधियों में संलग्न हैं, जहां प्रोफेसर/ शिक्षक और छात्र कई ऐसी नई प्रौद्योगिकियां विकसित करते हैं जिन्हें उनके व्यावसायीकरण की सुविधा के लिए पेटेंट कराने की आवश्यकता होती है। उच्च पेटेंट शुल्क इन प्रौद्योगिकियों को पेटेंट कराने के मार्ग में एक प्रतिबंधात्मक तत्व प्रस्तुत करते हैं और इस प्रकार वे नई प्रौद्योगिकियों के विकास को हतोत्साहित करने का काम करते हैं ।
पेटेंट के लिए आवेदन करते समय नवोन्मेषकों को इन पेटेंटों को उन संस्थानों के नाम पर लागू करना पड़ता है, जिन्हें बड़े आवेदकों के लिए उस शुल्क का भुगतान करना पड़ता है जो बहुत अधिक हैं और इस प्रकार यह प्रक्रिया निरुत्साहित करने के रूप में काम करती है । इस संबंध में और देश के नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिक्षण संस्थानों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए, पेटेंट नियम, 2003 के तहत विभिन्न अधिनियमों के संबंध में उनके द्वारा देय आधिकारिक शुल्क को पेटेंट (संशोधन) नियम, 2021 के माध्यम से अब घटा दिया गया है। यह संशोधन 21 सितंबर, 2021 से लागू हो गया है ।
इसके अलावा, प्राप्त आवेदनों के प्रसंस्करण में प्रक्रिया संबंधी विसंगतियों और अनावश्यक कदमों को दूर करने के उद्देश्य की पाप्ति के लिए वर्ष 2016, 2017, 2019 और 2020 में पेटेंट नियमों में संशोधन किया गया है, जिससे अनुदान/ पंजीकरण और अंतिम निपटान में तेजी आई है। नियमों में संशोधन करके प्रक्रियाओं को अधिक चुस्त , समयबद्ध , उपयोगकर्ता के अनुकूल और ई-लेन-देन के लिए अनुकूल बनाया गया है। इस संबंध में विभाग द्वारा निम्नलिखित पहल की गई हैं :
i. नए परीक्षकों की भर्ती करके जनशक्ति में वृद्धि।
ii. पेटेंट आवेदन करने और देने की प्रक्रिया को पूरी तरह से ऑनलाइन करना ।
iii. त्वरित और संपर्क रहित कार्यवाही के लिए वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेटेंट में मामलों की सुनवाई।
iv. वेबसाइट को गतिशील ढंग से पुनः डिजाइन करना (डायनामिक रिडिजाइनिंग) और हितधारकों तक बिना किसी परेशानी के वास्तविक समय आधार पर आईपी सूचनाएं पहुंचाना
v. पेटेंट आवेदन करने और देने के लिए डिजिटल प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना।
vi. स्टार्टअप्स को उनके आवेदन दाखिल करने और उनके प्रसंस्करण के लिए सुविधा प्रदान करने के लिए स्टार्टअप बौद्धिक संपदा संरक्षण (एसआईपीपी) की सुविधा के लिए योजना शुरू की गई है। ऐसे सुविधा प्रदाताओं (फैसिलिटेटरों) के व्यावसायिक शुल्कों की प्रतिपूर्ति एसआईपीपी योजना के प्रावधानों के अनुसार की जाती है ।
vii. हितधारकों के लाभ के लिए आईपीओ वेबसाइट में आईपी कार्यालयों के कामकाज से संबंधित मुद्दों के संबंध में फीडबैक/ सुझाव/ शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था स्थापित की गई है । एक टीम हितधारकों के सुझावों/ शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करती है और ई-मेल के माध्यम से उचित उत्तर भी प्रेषित करती है।
viii. उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) अपने बौद्धिक संपदा अधिकार संवर्धन एवं प्रबंधन प्रकोष्ठ (सेल फॉर आईपीआर प्रमोशन एंड मैनेजमेंट–सीआईपीएएम) के माध्यम से तथा पेटेंट डिज़ाइन और ट्रेडमार्क नियंत्रक (सीजीपीडीटीएम) के कार्यालय और प्रवर्तन एजेंसियां और अन्य हितधारक देश में उद्योग संघों के सहयोग से स्कूलों, विश्वविद्यालयों, उद्योगों, कानूनी संस्थाओं के लिए आयोजित आईपीआर में जागरूकता गतिविधियों में भागीदारी के माध्यम से आईपी हितधारकों को सूचना और ज्ञान के प्रसार में नियमित रूप से लगा हुआ है।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, पेटेंट की जांच में लगने वाला समय 2015 के औसत 72 महीनों से घटकर वर्तमान में 12-30 महीने हो गया है और जो प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर भी निर्भर करता है। इसके अलावा यह उम्मीद की जाती है कि पेटेंट आवेदनों के अंतिम निपटान का समय जिसमे अब तक कुछ वर्ष लगते थे, भी पहले से घटकर औसतन 48 महीने हो गया हैI यह भी 2021 के अंत तक आवेदन की प्राप्ति होने के बाद कम होकर औसतन 24-30 महीने रह जाएगा। इसके अलावा एक ऐसी त्वरित परीक्षा प्रणाली शुरू की गई है जिसमें सामान्य परीक्षा मार्ग के मामले में आवश्यक कुछ वर्षों की अवधि की तुलना में शीघ्र परीक्षा के तहत इस तरह के अनुरोधों की प्राप्ति से एक वर्ष के भीतर पेटेंट के अनुदान के लिए एक आवेदन पर निर्णय लिया जा रहा है।
सबसे तेजी से स्वीकृत पेटेंट वह है जिसे इस तरह के अनुरोध को जमा करने के 41 दिनों के भीतर प्रदान किया गया था। शीघ्र परीक्षा प्रणाली की यह सुविधा प्रारंभ में स्टार्टअप्स द्वारा ज्म्सा कराए गए पेटेंट आवेदनों के लिए प्रदान की गई थी। इसे अब पेटेंट नियमों में आवश्यक संशोधन करने के बाद 17 सितम्बर 2019 से पेटेंट आवेदकों की 8 और श्रेणियों तक बढ़ा दिया गया है । इन नई श्रेणियों में लघु एवं मध्यम उद्यम (एसएमई), महिला आवेदक, सरकारी विभाग, केंद्रीय, प्रांतीय अथवा राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित ऐसे संस्थान जिनका स्वामित्व या नियंत्रण सरकार, सरकारी कंपनी, सरकार द्वारा पूर्ण या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित संस्थान और पेटेंट अभियोजन प्रक्रिया के तहत आवेदकों के पास है, आते हैं। स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम के लिए प्रयासों के संबंध में स्टार्टअप्स द्वारा दायर पेटेंट आवेदनों के लिए शुल्क में 80% की छूट प्रदान की गई है
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