ग्लासगो में काॅप-26 शिखर सम्मेलन में ‘एक्शन एंड सॉलिडेरिटी-द क्रिटिकल डिकेड’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का संबोधन

Excellencies,

एडाप्टेशन के महत्वपूर्ण मुद्दे पर मुझे अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर देने के लिए My Friend बोरिस, Thank You ! वैश्विक Climate डिबेट में Adaptation को उतना महत्त्व नहीं मिला है जितना Mitigation को। यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है, जो climate change से अधिक प्रभावित हैं।

भारत समेत अधिकतर विकासशील देशों के किसानों के लिए climate बड़ी चुनौती है – क्रोपिंग पैटर्न में बदलाव आ रहा है, बेसमय बारिश और बाढ़, या लगातार आ रहे तूफानों से फसलें तबाह हो रही हैं। पेय जल के स्रोत से ले कर affordable हाउसिंग तक, सभी को climate change के खिलाफ resilient बनाने की जरुरत है।

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Excellencies,

इस संदर्भ में मेरे तीन विचार है। पहला, एडाप्टेशन को हमें अपनी विकास नीतियों और परियोजनाओं का मुख्य अंग बनाना होगा। भारत में नल से जल – tap water for all, स्वच्छ भारत- clean India Mission और उज्ज्वला- clean cooking fuel for all जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को एडाप्टेशन बेनेफिट्स तो मिले ही हैं, उनकी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ भी सुधरी है। दूसरा, कई ट्रेडिशनल कम्युनिटीज में प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का ज्ञान है।

हमारी एडाप्टेशन नीतियों में इन पारंपरिक practices को उचित महत्त्व मिलना चाहिए।ज्ञान का ये प्रवाह, नई पीढ़ी तक भी जाए, इसके लिए स्कूल के सैलेबस में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए। लोकल कंडीशन के अनुरूप lifestyles का संरक्षण भी एडाप्टेशन का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ हो सकता है। तीसरा, एडाप्टेशन के तरीके चाहे लोकल हों, किन्तु पिछड़े देशों को इनके लिए global सपोर्ट मिलना चाहिए।

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लोकल एडाप्टेशन के लिए ग्लोबल सपोर्ट की सोच के साथ ही भारत ने Coalition for Disaster Resilient Infrastructure CDRI की पहल की थी। मैं सभी देशों को इस initiative के साथ जुड़ने का अनुरोध करता हूँ।

धन्यवाद।

 

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DS/SKS