भारत के कोने-कोने से एकत्रित की गई कहानियों को बड़े पर्दे पर प्रदर्शित करने के वादे के साथ, गोवा में आयोजित 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में आज भारतीय पैनोरमा सेक्शन की शुरुआत की गई।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर ने 52वें आईएफएफआई के शुरुआती कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर भी उपस्थित थे।
उद्घाटन समारोह ने दर्शकों को इस वर्ष के लिए भारतीय पैनोरमा 2021 श्रेणी के तहत आईएफएफआई के 24 फीचर और 20 गैर-फीचर फिल्मों के आधिकारिक चयन से परिचित कराया।
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने श्री अनुराग सिंह ठाकुर के साथ सेमखोर (फीचर) और वेद- द विजनरी (गैर-फीचर) के फिल्म निर्माताओं व टीम को सम्मानित किया तथा उन्हें भागीदारी का प्रमाण पत्र प्रदान किया।
केंद्रीय मंत्री ने फिल्म निर्माताओं को बधाई देते हुए कहा, “आप सभी ने देश के दूर-दराज के हिस्सों से कहानियों को सामने लाने के प्रयास के दौरान संघर्ष किया है। अब, विषय-वस्तु ही अहम है और अगर आप सही विषय-वस्तु का सृजन करते हैं, तो यह न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जाएगी। हमारे बीच प्रतिभा है और आप सभी के सहयोग से हम आईएफएफआई को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। उन्होंने स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर को भी याद किया, जिन्होंने आईएफएफआई को गोवा के तटों पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने यह भी कहा कि “पहले हमने देखा कि फिल्म समारोहों में केवल अभिनेताओं, निर्देशकों और निर्माताओं को सम्मानित किया जाता था, लेकिन अब हम तकनीशियनों जैसे पृष्ठभूमि के लोगों को भी सम्मानित कर रहे हैं, जो फिल्म को पूरा करते हैं।” उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माताओं से भारत में आकर शूटिंग करने का भी आग्रह किया।
We have the talent, technology, skilled manpower; we can offer to the world, a platform to come & film in IndiaIt is very important that people who play crucial role behind the screens should be honoured- I&B Minister @ianuragthakur at inauguration of #IFFI52 Indian Panorama pic.twitter.com/68NxNmjNRK
सभा को संबोधित करते हुए, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल, श्री राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कहा, “मैं कोई फिल्म समीक्षक या उत्साही सिनेमा प्रेमी नहीं हूं, लेकिन मैंने हमेशा भारतीय पैनोरमा को देखा है, हमारी फिल्में हमारे समाज कैसे दर्शाती हैं। मैं यह गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारतीय फिल्मों ने हमारे समाज की आकांक्षाओं, जरूरतों और संघर्षों को खूबसूरती से दिखाया है।”
फीचर फिल्म श्रेणी में शुरुआती फिल्म- सेमखोर, जिसे भारतीय पैनोरमा सेक्शन में प्रदर्शित किया गया था, भारतीय पैनोरमा सेक्शन में प्रदर्शित होने वाली दिमासा भाषा की पहली फिल्म है। फिल्म के निर्देशक एमी बरुआ ने फिल्म के सम्मान और मान्यता के लिए आईएफएफआई को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि सेमखोर फिल्म सामाजिक वर्जनाओं से संबंधित है और फिल्म के माध्यम से उन्होंने असम के दिमासा समुदाय के संघर्षों को सामने लाने की कोशिश की।
गैर-फीचर फिल्म श्रेणी की शुरुआती फिल्म वेद- द विजनरी के निदेशक राजीव प्रकाश ने टिप्पणी करते हुए कहा, “यह फिल्म निर्माण के क्षेत्र में मेरे पिता की जीवटता, धैर्य की कहानी है। फिल्म उनके प्रयासों को दिखाती है जो सिनेमा के इतिहास में अंतर्निहित रहेंगे।”
इस अवसर पर फीचर और गैर-फीचर फिल्मों के जूरी सदस्यों को भी भागीदारी प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया।
Union Minister @ianuragthakur felicitates the Indian Panorama Jury on Day 2 of the 52nd @IFFIGoa #IFFI52 pic.twitter.com/KLSmkX5cCX
भारतीय पैनोरमा, भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का एक प्रमुख घटक है, जिसके तहत सिनेमाई कला के प्रचार के लिए सर्वश्रेष्ठ समकालीन भारतीय फिल्मों का चयन किया जाता है। इसे 1978 में भारतीय फिल्मों और भारत की समृद्ध संस्कृति एवं सिनेमाई कला को बढ़ावा देने के लिए आईएफएफआई के हिस्से के रूप में पेश किया गया था।
भारतीय पैनोरमा में शुरुआती फिल्मों के बारे में:
सेमखोर
डिरो सेमखोर के संसा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जब डिरो की मृत्यु होती है, तो उसकी पत्नी, जो एक सहायक मिड-वाइफ के रूप में काम करती है, अपने तीन बच्चों की देखभाल करती है। वह केवल ग्यारह साल की उम्र में अपनी इकलौती बेटी मुरी की शादी दीनार से कर देती है। दुर्भाग्य से, एक बच्ची को जन्म देने के बाद मुरी की मृत्यु हो जाती है। सेमखोर की प्रथा के अनुसार, यदि बच्चे के जन्म के दौरान किसी महिला की मृत्यु हो जाती है, तो शिशु को मां के साथ जिंदा दफना दिया जाता है। लेकिन डिरो की पत्नी सेमखोर में एक नई सुबह का संकेत देते हुए, मुरी के शिशु की रक्षा करती है।
वेद… द विजनरी
यह फिल्म, फिल्म-निर्माता वेद प्रकाश और 1939-1975 के दौरान न्यूजरील फिल्मांकन की दुनिया को जीतने की उनकी यात्रा की कहानी है। उनके असाधारण कार्यों में जनवरी 1948 में महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार का समाचार, जिसे 1949 में ब्रिटिश अकादमी पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था, भारत के स्वतंत्र होने पर सत्ता परिवर्तन, भारत के विभाजन के बाद हुई त्रासदी आदि कवरेज शामिल था। भारत के दृश्यों का एक बड़ा हिस्सा और इसके अशांत प्रारंभिक वर्षों में उनकी कड़ी मेहनत और सौंदर्यशास्त्र का उपहार है।
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