प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने आज पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की 2,177 करोड़ रुपए की लागत वाली अम्ब्रेला योजना “समुद्री सेवाएं, मॉडलिंग, अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी (ओ-स्मार्ट)” को 2021-26 की अवधि के दौरान जारी रखने की मंजूरी दे दी है।
इस योजना में सात उप-योजनाएं शामिल हैं, जैसे कि समुद्री प्रौद्योगिकी, समुद्री मॉडलिंग और परामर्श सेवाएं (ओएमएएस), समुद्री अवलोकन नेटवर्क (ओओएन), समुद्री निर्जीव (नॉन-लिविंग) संसाधन, समुद्री सजीव संसाधन एवं इको-सिस्टम (एमएलआरई), तटीय अनुसंधान एवं अनुसंधान पोतों का संचालन और रख-रखाव। इन उप-योजनाओं को राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई, भारतीय राष्ट्रीय समुद्री सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), हैदराबाद, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा, समुद्री सजीव संसाधन एवं इकोलॉजी केंद्र (सीएमएलआरई), कोच्चि, और राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर), चेन्नई जैसे मंत्रालय के स्वायत्त/संबद्ध संस्थानों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। साथ ही, इस कार्य में अन्य राष्ट्रीय संस्थानों को भी शामिल किया जाता है। इस योजना के लिए मंत्रालय का समुद्र विज्ञान और तटीय अनुसंधान पोतों का एक बेड़ा अनुसंधान कार्य में आवश्यक सहायता प्रदान करता है।
भारत में महासागरों से संबंधित अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी के विकास की शुरुआत महासागर विकास विभाग (डीओडी) द्वारा शुरू की गई थी, जिसे 1981 में स्थापित किया गया था। इसे बाद में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में मिला दिया गया और तब से यह कार्य निरंतर चल रहा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने राष्ट्रीय लाभ के लिए प्रौद्योगिकी विकास, पूर्वानुमान सेवाओं, क्षेत्र प्रतिष्ठानों, अन्वेषणों, सर्वेक्षण, प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों के माध्यम से समुद्र विज्ञान अनुसंधान में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। हमारे महासागरों के निरंतर अवलोकन, प्रौद्योगिकियों के विकास तथा हमारे समुद्री संसाधनों (सजीव और निर्जीव दोनों) के दोहन के लिए और समुद्र विज्ञान में अग्रणी अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अन्वेषी सर्वेक्षणों के आधार पर सतत पूर्वानुमान और सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र विज्ञान अनुसंधान गतिविधियों को शामिल करते हुए ओ-स्मार्ट योजना को लागू किया जा रहा है।
इस योजना की गतिविधियों के माध्यम से कई उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त की गई हैं। हिंद महासागर के आवंटित क्षेत्र में गहरे समुद्र में पॉली मेटैलिक नोड्यूल्स (पीएमएन) और हाइड्रोथर्मल सल्फाइड के खनन पर व्यापक अनुसंधान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) में एक अग्रणी निवेशक के रूप में भारत की मान्यता मिलना इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है। लक्षद्वीप के द्वीपों में निम्न तापमान के इस्तेमाल से विलवणीकरण का उपयोग कर विलवणीकरण संयंत्र की स्थापना के लिए प्रौद्योगिकी का विकास करना भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके अलावा, भारत की महासागर संबंधी गतिविधियों को अब आर्कटिक से अंटार्कटिक क्षेत्र तक विस्तारित किया गया है, जिसमें बड़े समुद्री स्थान शामिल हैं, जिनकी निगरानी इन-सीटू और उपग्रह-आधारित अवलोकन के माध्यम से की गई है। भारत ने अंतर-सरकारी क्षेत्र में वैश्विक महासागर प्रेक्षण प्रणाली के हिंद महासागर घटक के कार्यान्वयन में नेतृत्व की भूमिका निभाई है।
हिंद महासागर में मूर्ड और ड्रिफ्टर्स दोनों प्रकार के प्रेक्षण नेटवर्कों के माध्यम से समुद्र विज्ञान आयोग को तैनात और अनुरक्षित किया गया है। ये प्रेक्षण नेटवर्क मछली पकड़ने के संभावित स्थान और प्राकृतिक तटीय जोखिम चेतावनी के लिए समुद्री पूर्वानुमान सेवाएं प्रदान करता है, जो पड़ोसी देशों के साथ-साथ कई देशों के हितधारकों के लिए चक्रवात और सुनामी से जुड़े तूफान की चेतावनी देता है। भारत और हिंद महासागर के देशों के लिए सेवाएं प्रदान करने के लिए आईएनसीओआईएस, हैदराबाद में सुनामी, तूफान की लहरों जैसी समुद्री आपदाओं के लिए एक अत्याधुनिक तत्काल चेतावनी प्रणाली स्थापित की गई हैं, जिसे यूनेस्को द्वारा मान्यता दी गई है। भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) और भारत के महाद्वीपीय शेल्फ में समुद्र के संसाधनों, महासागर से संबंधित चेतावनी सेवाओं, नेविगेशन आदि की पहचान के लिए राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए व्यापक सर्वेक्षण आयोजित किया जाता है। समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और संरक्षण के उद्देश्य से ईईजेड और हिंद महासागर की गहराई वाले संसाधनों के मानचित्रण सहित समुद्री इको-सिस्टम में जीवित संसाधनों का मूल्यांकन शामिल है। मंत्रालय तटरेखा परिवर्तन और समुद्री इको-सिस्टम सहित भारत के तटवर्ती समुद्र के स्वास्थ्य की निगरानी भी कर रहा है।
ओ-स्मार्ट एक बहु-विषयक सतत योजना होने के कारण, मौजूदा व्यापक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास गतिविधियों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्र की क्षमता निर्माण में वृद्धि होगी। वर्तमान दशक को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा सतत विकास के लिए समुद्र विज्ञान के दशक के रूप में घोषित किया गया है और इस योजना को जारी रखने से वैश्विक समुद्र विज्ञान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास में हमारा निश्चय मजबूत होगा। इस योजना के जारी रहने से विशाल महासागरीय संसाधनों के सतत तरीके से प्रभावी और कुशल उपयोग के लिए नीली अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय नीति में महत्वपूर्ण योगदान होगा। तटीय अनुसंधान और समुद्री जैव विविधता संबंधी गतिविधियों के माध्यम से महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य-14 को प्राप्त करने के प्रयासों को शामिल किया जा रहा है। समुद्री पर्यावरण में काम कर रहे समुदायों और कई क्षेत्रों को लाभान्वित करने वाली समुद्री चेतावनी सेवाओं और प्रौद्योगिकियों के माध्यम से राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है और विशेष रूप से भारत के तटीय राज्यों में इसे निरंतर जारी रखा जा रहा है।
अगले पांच वर्षों (2021-26) में समुद्री क्षेत्र के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपयोग करके, विभिन्न तटीय हितधारकों के लिए पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाएं प्रदान करके, समुद्री जीवन के लिए संरक्षण रणनीति की दिशा में जैव विविधता को समझने तथा तटीय प्रक्रिया को समझने की दिशा में चल रही गतिविधियों को मजबूत करने के लिए यह योजना व्यापक कवरेज प्रदान करेगी।
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