तलेदंड का आशय है कि सिर काटकर मृत्यु तथा प्रकृति का संरक्षण और रक्षा नहीं करके मानवता अपने ही हाथों से अपनी कब्र खोद रही है। फिल्म तलेदंड में यही भावना प्रदर्शित की गई है। इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर आज गोवा में 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (इफ्फी) में भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म खण्ड में किया गया ।
52वें इफ्फी के दौरान मीडिया से बातचीत में फिल्म के निर्देशक प्रवीण क्रुपाकर ने कहा, “पिछले 100 वर्षों में हमने 50 प्रतिशत प्रकृति और पारिस्थितिकी को नष्ट कर दिया है। हमारी भावी पीढि़यों के लिए यह स्थिति बहुत बुरी है। मैं 30 वर्ष से ज्यादा अर्से से अपने एक दिव्यांग मित्र का प्रकृति के प्रति प्रेम देख रहा हूं और इसी बात ने मुझे यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।
जलवायु परिवर्तन का संकट वास्तविक है, कोई कल्पना नहीं, जैसा कि हम में से कुछ लोगों का मानना है और यदि यह कहानी दर्शकों के 0.1 प्रतिशत हिस्से तक भी पहुंचती है, तो मैं समझूंगा कि मैंने अपने कर्तव्य का निर्वहन कर दिया।
फिल्म के मुख्य अभिनेता को याद करते हुए क्रूपाकर ने कहा कि तलेदंड संचारी विजय के लिए श्रद्धांजलि है,जिनका हाल ही निधन हो गया था। वह फिल्म के विचार की अवस्था से ही इसके साथ जुड़े हुए थे और उन्होंने इसमें अभिनय भी किया था। संचारी विजय के बिना इस फिल्म का मंच पर आना संभव नहीं था। उन्होंने बताया कि किस तरह कार्यशालाओं के माध्यम से संचारी विजय ने कन्नड़ लहजे में महारत हासिल कर ली थी।
निर्देशक ने सोलिगा जनजाति के लोगों के साथ अपने अनुभवों के बारे में भी बताया, जिन्हें इस फिल्म के कुछ गीतों को गाने के लिए साथ जोड़ा गया था। उन्होंने बताया कि किस तरह इन गीतों की रिकॉर्डिंग स्टुडियो में बिना किसी तरह केरिॅकार्डिंग उपकरणों के उन्हीं लोगों के अंदाज से की गई थी।
कहानी सुनाने की विविध तकनीकों के बारे में दर्शकों के प्रश्न का उत्तर देते हुए क्रुपाकर ने कहा कि उन्होंने उपदेश सुनाए बिना दर्शकों के जहन तक पहुंचने के लिए फिल्म में नाटकीय रूपांतरण का उपयोग किया है।
फिल्म के सम्पादक बी.एस. केम्पाराजु ने फिल्म के नॉन-लिनीयर रूप से आगे बढ़ने के कारण संपादन में हुई कठिनाई के बारे में बताया।
फिल्म के बारे में
तलेदंड भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म है। यह मानसिक रूप से निशक्त युवक कुन्ना की कहानी है, जिसे प्रकृति के प्रति असीम प्रेम अपने पिता से विरासत में मिला है। पिता के निधन के बाद कुन्ना की मां उसे पाल-पोस कर बड़ा करती है। उसकी मां एक सरकारी नर्सरी में दिहाड़ी मजदूर है। सरकार उनके गांव को राजमार्ग से जोड़ने वाली एक सड़क के निर्माण को मंजूरी देती है। स्थानीय विधायक अपनी जमीन को बचाने के लिए सड़क की योजना में हेरफेर करता है, जिसकी वजह से अनेक पेड़ों को काटना पड़ेगा। पेड़ों की कटाई का विरोध करते हुए कुन्ना सरकारी अधिकारियों के साथ हाथापाई करता है और गिरफ्तार कर लिया जाता है। क्या वह पेड़ों को बचाने में कामयाब हो सकेगा?
निर्देशक के बारे में
निर्देशक: प्रवीण क्रुपाकर कन्नड़ फिल्म जगत के फिल्म निर्देशक, अभिनेता, पटकथा लेखक और निर्माता हैं। वह 1996 से मैसूर विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य भी हैं।
निर्देशक: प्रवीण क्रुपाकर
निर्माता : कृपानिधि क्रिएशन्स
पटकथा : प्रवीण क्रुपाकर
डीओपी : अशोक कश्यप
सम्पादक : बी.एस. केपाराजु
अभिनेता : संचारी विजय, मंगला एन., चैत्रा अचार, रमेश पी.
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एमजी/एएम/आरके