कोरोना पर प्रधानमंत्री का चुनिंदा जिलाधिकारियों के साथ संवाद का विरोध करने से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मानसिकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या यह रवैया देश के संविधान के अनुरूप है?
दस राज्यों के जिन जिलों में संक्रमण सबसे ज्यादा है उनके जिला अधिकारियों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 20 मई को सीधे संवाद करेंगे। यह संवाद वर्चुअल तकनीक से होगा। यानी जिलाधिकारी अपने जिले के दफ्तर में ही बैठकर प्रधानमंत्री से संवाद कर लेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री के सीधे जिला अधिकारियों से संवाद पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐतराज जताया है। ममता नहीं चाहती कि उनके राज्य के जिलाधिकारियों से प्रधानमंत्री सीधे संवाद करें। हो सकता है कि ममता बनर्जी अपने जिलाधिकारियों को प्रधानमंत्री के संवाद में शामिल नहीं होने दें। सब जानते हैं कि जिलाधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी होते हैं। ऐसे आईएएस भले ही राज्यों में काम करें, लेकिन चयन से लेकर सेवानिवृत्ति तक केन्द्र के नियमों के तहत होती है। ऐसे में आईएएस अफसरों की जवाबदेही केन्द्र सरकार के प्रति भी होती है। लेकिन अब आईएएस अफसरों का प्रधानमंत्री के साथ संवाद पर ममता बनर्जी को एतराज है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी किस मानसिकता से पश्चिम बंगाल का शासन चला रही है। प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल की प्रशासनिक व्यवस्था में दखल नहीं दे रहे हैं, बल्कि कोरोना संक्रमण को रोकने में सहयोग कर रहे हैं। क्या ममता बनर्जी बंगाल में तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को अपना गुलाम समझती है? ममता को यह समझना चाहिए कि पश्चिम बंगाल भी देश के उन दस राज्यों में शामिल हैं, जहो कोरोना संक्रमण के केस सबसे ज्यादा है। 12 मई को ही बंगाल में 20 हजार नए केस दर्ज किए हैं और 135 संक्रमित व्यक्तियों की मौत हुई है। यह आंकड़ा प्रतिदिन का है, इससे बंगाल में संक्रमण की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के जिलाधिकारियों से ही संवाद कर रहे हैं। इन दस राज्यों में भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि भी शामिल हैं। यदि कोई प्रधानमंत्री सीधे जिलाधिकारियों से संवाद कर संक्रमण की स्थिति का पता लगा रहा है तो इसमें विरोध की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है, लेकिन शायद ममता बनर्जी यह दिखाना चाहती है कि बंगाल में वे ही सबसे बड़ी शासक हैं। उनके सामने प्रधानमंत्री भी कुछ नहीं है। हो सकता है कि ममता के इस कृत्य से बंगाल के कुछ लोग खुश हो जाएं, लेकिन यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। यह भारत की संघीय व्यवस्था के खिलाफ भी है। यह माना कि ममता बनर्जी को हाल के चुनाव में जीत हासिल हुई है, लेकिन ममता बनर्जी देश के कानून से ऊपर नहीं हो सकती है।
S.P.MITTAL BLOGGER (13-05-2021)
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