रेलवे ने असहमति के लिए कर्मचारियों को दिए 4 दिन, वेतन से पैसे काटने का मामला
कोटा। वेतन से पैसे काटने की असहमति के लिए रेलवे ने करीब 900 किलोमीटर क्षेत्र में फैले कोटा मंडल के 13 हजार 200 कर्मचारियों को सिर्फ 4 दिन का समय दिया था। ऐसे में बड़ी संख्या में कर्मचारियों को मामले की जानकारी तक नहीं मिल सकी। इसके बाद रेलवे ने कर्मचारियों की सहमति मानते हुए उनके वेतन से पैसे काट लिए।
कर्मचारियों ने बताया कि यह सब सोची समझी योजना के तहत किया गया। अधिकारियों ने जानबूझ कर 4 जून शुक्रवार को लेटर पर हस्ताक्षर किए।
कर्मचारियों ने बताया कि इस लेटर में लिखा गया था की महिला कल्याण संगठन द्वारा जबलपुर में अनाथ और निराश्रित बच्चों के लिए एक जागृति संस्था (शेल्टर होम) का संचालन किया जा रहा है। इसके लिए कर्मचारियों से 50 रुपए का स्वैच्छिक अंशदान लिया जाना है। इसकी कटौती कर्मचारियों के वेतन से की जाएगी। जो कर्मचारी इससे असहमत हैं वह 10 जून तक अपने सुपरवाइजर को लिखित में इसकी सूचना दे दें। नहीं तो कर्मचारी की सहमति मानते हुए उनके वेतन से पैसे काट लिए जाएंगे।
कर्मचारियों ने बताया कि इस पत्र के हस्ताक्षर के अगले दिन 5 और 6 जून को शनिवार और रविवार का अवकाश आ गया। ऐसे में ऐसे में कर्मचारियों के पास 7 से 10 जून तक 4 दिन का समय ही मिला। इतने कम समय में अधिकांश कर्मचारियों को इस लेटर के बारे में पता ही नहीं चला। इसका फायदा उठाते हुए रेलवे ने कर्मचारियों की सहमति मानते हुए उनके खाते से पैसे काट लिए। जिन कर्मचारियों को समय रहते इसका पता चल गया उन्होंने पैसे काटने पर अपनी असहमति जता दी।
कर्मचारियों ने बताया कि अधिकारियों ने जानबूझकर कम समय दिया ताकि कर्मचारियों के वेतन से आसानी से पैसा काटा जा सके।
10 जून के बाद मिला लेटर
कई कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें समय निकलने के 10 जून के बाद यह लेटर मिला। ऐसे में वह अपनी असहमति नहीं दे सके और उनके वेतन से पैसा कट गया।
यह है मामला
उल्लेखनीय है कि रेलवे ने महिला कल्याण संगठन के लिए कोटा मंडल सहित पूरे पश्चिम-मध्य रेलवे जोन के करीब 50 हजार कर्मचारियों के चेतन से 50-50 रुपए काट लिए। वरिष्ठ अधिकारियों के वेतन से 5-5 हजार तथा कनिष्ठ अधिकारियों के वेतन से भी से 2-2 हजार रुपए काटे गए हैं। कई कर्मचारियों ने गैर मान्यता प्राप्त संगठन के लिए इस तरह गुपचुप तरीके से पैसे काटने का विरोध किया है। दबी जुबान में अधिकारी भी रेलवे के इस निर्णय से आप सहमत नजर आ रहे हैं लेकिन मामला उच्चाधिकारियों से जुड़ा होने के कारण अधिकारी खुलकर बोलने से बच रहे हैं।