खेतड़ी खनन पट्टा प्रकरण
उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार खान विभाग स्तर पर विचाराधीन राजस्व हानि नहीं
जयपुर, 19 जुलाई। खान विभाग ने स्पष्ट किया है कि झुन्झुनू के मीणा की ढ़ाणी तहसील खेतडी के खनन पट्टा संख्या 367/2006 राकेश मोरदिया एवं 368/2006 एम.जी.एम. एग्रोगेट्स प्रा0 लि0 के मामलें में उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के अनुसार राज्य सरकार द्वारा नियमानुसार आदेश जारी होने एवं उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध नो अपील का निर्णय करने से राज्य सरकार के हितों पर किसी तरह का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है और ना ही राज्य सरकार को किसी तरह की हानि हुई है।
उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने आदेश 10 मार्च, 2021 के अनुसार पूर्व निर्णय को अपास्त कर प्रकरण को रिमाण्ड करते हुए खान विभाग को नियमानुसार कार्यवाही करने की स्वतंत्रता दी है। इस प्रकरण के संबंध में न्यायालय के आदेश पर अपील नो अपील का निर्णय अतिरिक्त महाधिवक्ता की सलाह और उस पर महाधिवक्ता राजस्थान सरकार की राय के अनुसार खान, विधि व वित विभाग के अधिकारियोें की विभागीय स्थाई समिति की बैठक में किया गया। चूंकि न्यायालय के आदेश के अनुसार प्रकरण पर खान विभाग द्वारा निर्णय किया जाना है, ऎसे में जब खान विभाग द्वारा कोई आदेश ही पारित नहीं किया गया है तब किसी को लाभ देने या राज्य सरकार के राजस्व हानि का प्रश्न ही नहीं उठता है। ऎसे में राज्य सरकार को 273 करोड़ रुपये की चपत लगाने का समाचार दुर्भावनापूर्ण होने के साथ ही छवि खराब करने वाला है। वास्तव में देखा जाए तो शास्ती की राशि 273 करोड़ नहीं होकर 274 करोड़ रुपये है और पूरा प्रकरण उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार खान विभाग स्तर पर विचाराधीन है और इस पर उच्च न्यायालय ने आदेश पारित कर खान विभाग को नियमानुसार निर्णय करने की स्वतंत्रता दी है।
खनन पट्टा संख्या 367/2006 राकेश मोरदिया एवं 368/2006 एम.जी.एम. एग्रोगेट्स प्रा0 लि0 के पक्ष में निकट ग्राम मीणा की ढाणी तहसील खेतडी जिला झुन्झुनू में विभागीय आदेश 15 नवम्बर 2007 से स्वीकृत है। खनन पट्टा क्षेत्रों में खनि अभियन्ता, झुन्झुनू द्वारा 28 अक्टूबर, 2015 से क्रमशः लगभग रूपये 65.93 करोड एवं 208.85 करोड़ की शास्ती अधिरोपित किये जाने पर न्यायालय अतिरिक्त निदेशक (खान), जयपुर द्वारा आदेश 18 दिसम्बर 2015 से नोटिस 28 अक्टूबर 2015 पर रोक लगा दी गई एवं आदेश 18 मई 2016 को अपीलों का निस्तारण करते हुए नोटिस 28 अक्टूबर 2015 को निरस्त कर दिया।
प्रकरणों का शासन स्तर पर परीक्षण कर अतिरिक्त निदेशक (खान), जयपुर के आदेश 18 मई 2016 को निष्प्रभावी करने के आदेश 25 अप्रेल 2017 को जारी किये गये। आदेश 25 अप्रेल 2017 के विरूद्व खनन पट्टेधारियों द्वारा रिट याचिकाऎं दायर किये जाने पर माननीय उच्च न्यायालय ने दिनांक 31 मई 2017 को निर्णय पारित कर प्रकरण राज्य सरकार को रिमाण्ड किये।
उच्च न्यायालय के निर्णय की पालना में राज्य सरकार द्वारा 22 जून 2017 को आदेश पारित कर पुनः न्यायालय अतिरिक्त निदेशक (खान), जयपुर के आदेश 18 मई 2016 को निष्प्रभावी कर दिया गया।
आदेश 22 जून 2017 के विरूद्व खनन पट्टेधारियों द्वारा पुनः रिट याचिकाएं दायर की गईं जिनमें उच्च न्यायालय, जयपुर द्वारा प्रकरणों में दिनांक 15.01.2018 को ज्योलोजीकल सर्वे ऑफ इण्ड़िया एवं इण्ड़ियन ब्यूरो ऑफ माइन्स के अधिकारियों की कमेटी गठित कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिये गये। उक्त अधिकारियों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में खनन क्षेत्रों में मेसेनरी स्टोन बताया गया।
कमेटी की रिपोर्ट के उपरान्त न्यायालय द्वारा प्रकरणों में 10 मार्च 2021 को निर्णय पारित कर नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही की स्वतंत्रता देते हुए प्रकरण रिमाण्ड किये गये। न्यायालय के निर्णय का ऑपरेटिव पार्ट इस प्रकार है –
ऎसे में राज्य सरकार द्वारा समस्त तथ्यों का अध्ययन कर खनन पट्टों के संबंध में नियमानुसार आदेश पारित किये जाने हैं। चूंकि प्रकरण राज्य सरकार के खान विभाग स्तर पर विचाराधीन है और जब निर्णय नहीं हुआ है तो किसी भी तरह के राजस्व की हानि होने का प्रश्न ही नहीं उठता है। इस प्रकार खनन पट्टेधारियों को किसी प्रकार का कोई अनुचित लाभ नहीं दिया गया है।