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जल संरक्षण में महत्वपूर्ण विभागों की भूमिका पर उच्च स्तरीय बैठकप्रदेश के दूरगामी हितों के लिए जल संरक्षण एवं ग्राऊण्ड वाटर रिचार्ज पर आमजन में जागरूकता का माहौल तैयार हो-जलदाय एवं भूजल मंत्रीजयपुर, 12 जनवरी। जलदाय एवं भू-जल मंत्री डॉ. महेश जोशी ने कहा कि प्रदेश के दूरगामी हितों के मद्देनजर जल संरक्षण एवं ग्राऊण्ड वाटर रिचार्ज को बढ़ावा देने के लिए आमजन को शिक्षित करते हुए जागरूकता का माहौल तैयार किया जाए, जिससे सभी लोग अपनी जिम्मेदारी को समझे और राज्य सरकार द्वारा भावी पीढ़ी के हितों के लिए उठाए गए कदमों में भागीदारी के लिए आगे बढ़कर सहयोग करें।डॉ. जोशी बुधवार को शासन सचिवालय में प्रदेश में जल संरक्षण को बढ़ावा देने के कदमों तथा घरेलू एवं अन्य प्रकार के उपयोग में पानी के अपव्यय को रोकने के सम्बंध में विभिन्न विभागों की एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में गिरते भू-जल को रोकने के लिए सभी बड़े विभागों को ठोस रणनीति एवं कारगर कार्ययोजना के साथ साझा प्रयास करने होंगे।पार्कों में ’’वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स’’ के उपयोग को अनिवार्य करने पर चर्चाजलदाय मंत्री ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में पार्कों के रखरखाव के लिए ’’रिसाईकिल्ड वाटर’’ के उपयोग को अनिवार्य करने के बारे में सभी स्तरों पर व्यापक स्तर पर चर्चा के बाद नियम बनाए जा सकते है। इसके लिए शहरों के मास्टर प्लान में ’’सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट’’ स्थापित करने के लिए पहले से ही स्थान निर्धारित करने पर भी विचार किया जा सकता है। उन्होंने औद्योगिक क्षेत्रों में भी रिसाईकिल्ड वाटर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रावधानों की समीक्षा के भी निर्देश दिए।सरकारी भवनों में ’’वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स’’ की जांच के लिए अभियानडॉ. जोशी ने प्रदेश में वर्षा जल संरक्षण के लिए बड़े भवनों में बनने वाले ’’स्ट्रक्चर्स’’ की जांच के सिस्टम को बेहतर बनाने आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि सार्वजनिक निर्माण विभाग राज्य में सरकारी भवनों में बने ’’वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स’’ की जांच के लिए अभियान चलाएं। इसके आधार पर आवश्यकता अनुसार इनमें सुधार के लिए पहल की जाए। इसके साथ ही निजी भवनों में निर्धारित नॉम्र्स के अनुसार वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स बने और वे तकनीकी रूप से सही हो, इसके लिए मॉनिटरिंग व्यवस्था को और प्रभावी बनाया जाए।सैनेटरी फिटिंग के लिए केवल दो बटन की टंकिया ही बनेजलदाय मंत्री ने कहा कि शहरी क्षेत्रों में टायलेट्स में सबसे अधिक पानी का अपव्यय होता है। इसके लिए सभी स्थानों पर दो बटन की टंकी के उपयोग को अनिवार्य करने की पहल की जाए। इस बारे में केन्द्र सरकार को सैनेटरी फिटिंग के लिए केवल दो बटन की टंकी का ही उत्पादन करने और एक बटन की टंकी के उत्पादन को पूरी तरह से बंद करने के सम्बंध में नीति निर्धारित करने के लिए पत्र लिखा जाए।सड़कों पर नई संरचनाओं के निर्माण की सम्भावना पर विमर्शडॉ. जोशी ने बैठक में सुझाव दिया कि शहरों की प्रमुख सड़कों पर जहां वर्षा के समय बड़ी मात्रा में पानी व्यर्थ बह जाता है, उन मार्गों और उनके किनारों पर तकनीकी रूप से परिपूर्ण संरचनाएं बनाकर भू-जल रिचार्ज की सम्भावनाएं तलाशे। उन्होंने जयपुर शहर में द्रव्यतवती नदी के पक्के तल में अलग-अलग स्थानों पर भी भू-जल रिचार्ज के लिए की ऎसी संरचनाएं बनाने की दिशा में भी विचार करने की आवश्यकता जताई।कम्यूनिटी रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स का निर्माण जरूरीबैठक में जलदाय एवं भूजल विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री सुधांश पंत ने कहा कि वर्षा जल संरक्षण एवं ग्राऊण्ड वाटर रिचार्ज के लिए आवासीय क्षेत्रों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स‘ के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में ‘कम्यूनिटी रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स‘ का भी व्यापक स्तर पर निर्माण करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सभी विभाग अपने स्तर पर जल संरक्षण एवं भू-जल रिचार्ज के लिए सतत प्रयास करें।भू-जल की स्थिति पर विस्तृत प्रस्तुतीकरणबैठक में संयुक्त शासन सचिव जलदाय विभाग श्री प्रताप सिंह ने प्रदेश में भू-जल की स्थिति के बारे में विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया। इसमें बताया गया कि प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो पूरे देश का 11 प्रतिशत भाग है। पूरे देश की तुलना में यहां की जनसंख्या 5.5 प्रतिशत है, मगर स्रोतों से पानी की उपलब्धता मात्र 1.15 प्रतिशत ही है। प्रदेश में मानसून के सीजन में 28 से 36 दिनों तक वर्षा होती है, जो निम्न और अनियमित श्रेणी में आती है। औसत वर्षा का आंकड़ा 525 मिलीमीटर है और वाष्प-उत्सर्जन बहुत अधिक है। प्रदेश में 15 रिवर बेसिन के माध्यम से सतही जल 19.56 बिलियन क्यूबिक मीटर तथा भू-जल (31 मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार) की उपलब्धता 11.073 बिलियन क्यूबिक मीटर है। कृषि क्षेत्र में पानी का उपभोग 85 प्रतिशत से अधिक है, जो ज्यादातर भू-जल के स्रोतों पर आधारित है। इसी प्रकार पेयजल और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए आवश्यकता का 65 प्रतिशत से अधिक भी भू-जल पर निर्भर है। इसके अलावा प्रदेश में भू-जल के लिहाज से 203 सब्लॉक्स अति दोहित (ओवर एक्सप्लोयटेड), 23 क्रिटिकल, 29 सेमी क्रिटिकल तथा 37 सुरक्षित श्रेणी में है।गत बैठक के बाद विभागों ने उठाए कदमबैठक में बताया गया कि जल संरक्षण के उपायों के सम्बंध में भू-जल विभाग के समन्वय में आयोजित पिछली बैठक के बाद नगरीय विकास एवं आवासन विभाग द्वारा प्रदेश में 225 वर्गमीटर एवं इससे अधिक आकार के भूखंडों पर बनने वाले भवनों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर्स‘ की अनिवार्यता के बारे में आदेश जारी किए जा चुके है। इसी प्रकार सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा सरकारी भवनों तथा उद्योग विभाग द्वारा औधोगिक क्षेत्रों के भवनों के शौचालयों में डबल बटन की टंकी लगाने के सम्बंध में निर्देश जारी किए गए हैं।बूंद-बूंद खेती को प्रोत्साहनबैठक में प्रदेश में भूजल रिचार्ज एवं जल की बचत के लिए बूंद-बूंद खेती को प्रोत्साहित करने सहित अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की गई। बैठक में नगरीय विकास विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री कुंजीलाल मीना, कृषि एवं सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव श्री दिनेश कुमार, वन विभाग के शासन सचिव श्री बी. प्रवीण, पीडब्ल्यूडी के शासन सचिव श्री चिन्न हरि मीना, निदेशक, वाटर शैड श्री आशीष गुप्ता, निदेशक डीएलबी श्री दीपक नंदी, भूजल विभाग के मुख्य अभियंता श्री सूरजभान सिंह, जलदाय विभाग के मुख्य अभियंता श्री सीएम चौहान एवं श्री आर के मीना के अलावा जल संसाधन, इण्डस्ट्रीज एवं अन्य सम्बंधित विभागों के अधिकारी मौजूद रहे।——