इस बार रमजान में 14 घंटे 25 मिनट का होगा सबसे लंबा रोजा
चांद दिखा तो 14 अप्रैल से हो सकती है रमजान की शुरुआत-गंगापुर सिटी
रमजान का मुबारक महीना शुरु होने वाला है। अगर 13अप्रैल की रात चांद दिखता है तो रमजान14 अप्रैल से शुरू पहला रोजा शुरु हो जाएगा। हालांकि इस समय पूरे राज्य में कोरोना संक्रमण ने दस्तक दे रखी है। प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर के कहर ने फिर से लॉकडाउन की वापसी कर दी है। सरकार ने 5 अप्रैल से 19 अप्रैल तक प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों आंशिक लॉकडाउन लागू करने का निर्णय लिया है। यदि राज्य में कोरोना बढ़ा ओर लॉकडाउन लगा तो मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिदों में नहीं जा सकेंगे। उन्हें अपने घरों में ही इबादत और इफ्तार करना होगा। रमजान में पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह भी मस्जिदों में नहीं होगी।मुस्लिम धर्मगुरू और इस्लाम के जानकार मौलाना खलीक अहमद कासमी ने बताया कि रमजान में इस महामारी से बचाने के लिए अल्लाह से खास दुआ करें। रमजान में लोग तरावीह की नमाज पढ़े। मुकद्दस माह रमजान के लिए 9 दिन का समय शेष है। चांद नजर आने के बाद पहला रोजा 14 अप्रैल को हो सकता है। गत वर्ष रमजान की शुरुआत 24 अप्रेल के तीसरे सप्ताह से हुई थी।
उलेमा के मुताबिक गर्मियों में दिन बड़े होते है। ऐसे में रोजे का समय भी इस दौरान सबसे अधिक रहता है। इस साल रमजान माह का सबसे अधिक समय रोजा 14 घंटे 25 मिनट का होगा। उलेमा के मुताबिक अलग-अलग जगहों के हिसाब से समय में कुछ बदलाव हो सकता है। शहर काजी शाहिद अहमद के मुताबिक अभी शाबान का महीना चल रहा है। इसके खत्म होने के बाद रमजान माह शुरू होगा। चांद नजर आने के साथ ही तरावीह की नमाज शुरू हो जाएगी। अगले दिन रोजा रखा जाएगा।गुनाहो से बचने की सीख
उलेमा के मुताबिक ये महीना हमें गुनाहों से बचने और भलाई के रास्ते पर चलने की सीख देता है। पूरे माह के रोजे फर्ज है। रोजे के मायने केवल भूखे प्यासे रहना नहीं है। बल्कि खुद को हर उस बात से रोकना है, जिससे किसी को तकलीफ पहुंचे। उलेमा बताते है जुबान से किसी की बुराई या ऐसी बात न बोले जो किसी को बुरी लगे। हाथों से ऐसे काम न करे जो किसी को तकलीफ पहुंचाए। उन जगहों पर न जाए जहां गुनाह हो रहे है। रोजे में अगर इन बातों की पाबंदी नहीं की तो ये भूखे प्यासे रहने के जैसा ही होगा। ऐसे में जरुरी है कि इबादत में ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजारे।
प्रशिक्षण का महीना है रमजान
रमजान माह एक प्रशिक्षण का माह होता है। यह इंसान को निखारता है। यह माह इस बात का प्रशिक्षण देता है कि इंसान अपने हाथों से किसी का बुरा न करे। पैर कभी किसी का बुरा करने के लिए आगे नहीं बढ़े। कान से बुरा नहीं सुनें। आंखे बुरा नहीं देखे। किसी पर किसी भी प्रकार से जुर्म व ज्यादती न करे। यह खास माह बताता है कि प्रशिक्षण में जो सीखा है उसे जीवन में उतारे। यह माह संयम और अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ने की, लोगों के दुख दर्द को समझाने की,नेकी व ईमान की राह पर चलने व जीवन को संवारने की सीख देता है।
भूखे रहना ही रोजा नहीं:
मुसलमान के लिए रोजा एक औपचारिकता ही नहीं बल्कि पूरे शरीर के हिस्से का रोजा होता है। आंख से बुरी चीज नहीं देखना, कान से किसी की बुराई नहीं सुनना, मुंह से किसी को बद कलाम नहीं कहना, हाथ से किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना, पांव से गलत राहों पर नहीं चलना, दिल से किसी के लिए बदख्याल नहीं रखना। जिस तरह आग से तपने के बाद सोना कंचन बनता है, उसी तरह इंसान रोजा रखने के बाद सच्चा इंसान होता है।