प्रधानमंत्री इमरान खान बताएं कि क्या पाकिस्तान में रेडियो और टीवी चैनलों पर महिलाओं की आवाज पर पाबंदी लगाई जा सकती है?
31 अगस्त को जब अमरीकी सैनिक चले जाएंगे, तब अफगानिस्तान का क्या होगा?
==========
पिछले दिनों जब मुस्लिम चरमपंथी संगठन तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान अब गुलाम से आजाद हो गया है। यानी इमरान ने अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को जायज ठहराया। अब जब तालिबान ने अफगानिस्तान के टीवी चैनलों और रेडियो पर महिलाओं की आवाज पर रोक लगा दी है, तब इमरान खान को बताना चाहिए कि क्या ऐसी रोक पाकिस्तान में भी लगाई जा सकती है। अभी तो पाक चैनलों पर महिलाएं एंकर का काम कर रही है तथा मनोरंजन चैनलों और फिल्मों में महिलाओं की खासी भूमिका है। तालिबान ने तो अफगानिस्तान में संगीत का प्रसारण भी बंद कर दिया है। सब जानते हैं कि अफगानिस्तान से अमरीका को हटाने में पाकिस्तान की महत्वपूर्ण भूमिका है। पाकिस्तान में ही तालिबान लड़ाके शरण लेते रहे। जब तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान में घुसे तो पाकिस्तान भी जश्न मनाया गया। कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में तालिबान की सोच वाले मुसलमानों का दबदबा है। ऐसे में अफगानिस्तान में रेडियो और टीवी पर जो हाल महिलाओं का हुआ है, वही हाल पाकिस्तान में भी हो सकता है। क्या ऐसे हालातों को इमरान खान स्वीकार करेंगे? जबकि इमरान खान तो महिलाओं को लेकर स्वतंत्र विचारों के रहे हैं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के सदस्य और फिर कप्तान बनने पर इमरान खान ने इंगलैंड की कई महिलाओं के साथ प्रेमालाप किया है। एक-दो अंग्रेज लड़कियों के साथ निकाह भी किया है। इमरान खान की रंगीन मिजाजी के बारे में पूरा पाकिस्तान जानता है। इमरान खान जिस तरह तालिबान के साथ खड़े हैं, उससे पाकिस्तानी महिलाओं में भी डर हो रहा है। जहां तक भारत का सवाल है तो महिलाओं के बगैर रेडियो और टीवी चैनलों को चलाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मनोरंजन चैनलों को तो छोड़िए न्यूज चैनलों पर भी महिलाएं घूटने से ऊपर की ड्रेस पहन कर एंकरिंग करती है। जब कैमरा सामने होता है तो ऐसी एंकर बड़ी मुश्किल से कुर्सी पर बैठ पाती है। ऐसा नहीं कि अफगानिस्तान की घटनाओं का भारत पर असर नहीं पड़ेगा। भारत में भी बड़ी संख्या में तालिबान के समर्थक मौजूद है। अफगानिस्तान के हालात भारत के लिए भी चुनौती हैं।
क्या होगा, अफगानिस्तान का:
29 अगस्त को ब्रिटिश सेना के जवानों ने भी अंतिम तौर पर अफगानिस्तान को छोड़ दिया। तय समझौते के मुताबिक 31 अगस्त को अमरीकी सैनिक भी काबुल एयरपोर्ट से विदाई ले लेंगे। अमरीकी और ब्रिटिश सैनिकों के रहते ही तालिबान ने अफगानिस्तान में अनेक पाबंदियां लगा दी है तथा अफगानिस्तान में मुस्लिम चरमपंथी संगठन आमने सामने हो गए हैं। अब इन संगठनों में आपस में ही जंग हो रही है। काबुल एयरपोर्ट पर प्रतिदिन विस्फोट हो रहे है। सवाल उठता है कि अमरीकी सैनिकों की पूर्ण वापसी के बाद अफगानिस्तान का क्या होगा? क्या तालिबान, आईएसआईएस-के जैसे चरमपंथी संगठन शांति से रह सकेंगे? सब जानते हैं कि अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान की जबरदस्त दखलंदाजी है। अमरीका के जाने के बाद अफगानिस्तान में चीन जैसे शक्तिशाली देश को घुसने का अवसर मिलेगा। मुस्लिम आबादी के लिए यातना शिविर बना रखें हैं। देखना होगा की ऐसी प्रवृत्ति वाले चीन को तालिबान और आईएसआईएस जैसे चरमपंथी संगठन कितना महत्व देते हैं।