राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन यानी एनएमसीजी ने स्टॉकहोम विश्व जल सप्ताह 2021 के तीसरे दिन ‘नदियों को लेकर संवेदनशील शहरों के विकास’ पर दूसरे मेल-मिलाप यानी मीट एंड मिंगल सत्र की मेजबानी की। इस सत्र का संचालन सीईपीटी विश्वविद्यालय की प्रो. मोना अय्यर ने किया। उन्होंने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए सत्र की शुरुआत की और समझाया कि शहर नियोजन में नदी को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से व्यवसायियों और अन्य हितधारकों के लिए इस सत्र की योजना बनाई गई है।
एनएमसीजी के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा ने भारत में नदियों को लेकर संवेदनशील शहरों के विकास एवं जल स्रोतों के महत्व और इंसानी रिहाइश के साथ इसके जुड़ाव पर अपने विचार साझा किए।उन्होंने बताया कि आईआईटी सहायता-संघ यानी कंसोर्टियम द्वारा विकसित किए गए जीआरबीएमपी ने भी नदियों के एकीकरण और पूर्ण जल चक्र के साथ शहर या शहरी नियोजन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि नदी के कायाकल्प का सीधा संबंध शहरी विकास से है और अगर हमारे शहरों को साफ रखा जाए तो नदियों को साफ रखा जा सकता है। इसे हासिल करने के लिए हमें नदियों को लेकर संवेदनशील शहरों की जरूरत है।
एनएमसीजी के महानिदेशक ने कहा कि हमें शहर की योजना बनाते समय स्थायी रास्तों एवं तरीकों को विकसित करने और नदियों एवं शहरों को एकीकृत करने वाली प्रबंधन योजनाओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।उन्होंने एक शहर में विभिन्न जल निकायों के आकलन एवं समझ और एक शहर के जल चक्र को उसके बने हुए वातावरण में एकीकृत करने पर जोर दिया।श्री मिश्रा ने आगे कहा कि एनएमसीजी शहरी नदी प्रबंधन ढांचा और नदियों को लेकर संवेदनशील मास्टर प्लान विकसित करने के लिए एनआईयूए और अन्य संबंधित विभागों के साथ काम कर रहा है।जिन प्रमुख बिंदुओं को समझने की जरूरत है, उनमें क्षेत्रीय स्तर की योजना और नदी के तटों पर आने वाली चुनौतियों की जानकारी होना शामिल है।उन्होंने शहरी क्षेत्रों में तेज गर्मी की समस्या के लिए जिम्मेदार जलवायु परिवर्तन का जिक्र किया और कहा कि बेसिन प्रबंधन के साथ-साथ नदियों को लेकर संवेदनशील योजना से यह समस्या हल की जा सकती है।
श्री मिश्रा ने अपनी बात खत्म करते हुए बताया कि एनएमसीजी ने सतत विकास और क्षमता निर्माण के माध्यम से नदियों का कायाकल्प करने की खातिर सहयोग के लिए एक अनूठा मंच प्रदान करने के उद्देश्य से ‘नदी के शहर गठबंधन’ की अवधारणा रखी है।
उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के जरिये योजना एवं वास्तुकला कॉलेज के छात्रों की 3 सर्वश्रेष्ठ शोध थीसिस को प्रायोजित और इस दिशा में युवाओं में जागरूकता पैदा करके नदियों को लेकर संवेदनशील शहरों की योजना को समर्थन देने की एनएमसीजी की पहल के बारे में भी बताया।
इसके बाद प्रो. मोना अय्यर ने एनआईयूए से श्री विक्टर शिंदे को शहरी नदी प्रबंधन योजना (यूआरएमपी) ढांचे के बारे में विस्तार से बताने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि नदी प्रबंधन के लिए शहरों का समर्थन करने और शहरी स्तर पर आईआरबीएम की अवधारणा को संचालित करने की रूपरेखा तैयार की गई है। अभी तक जिस बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, वह है, इस अवधारणा को लागू करना और दर्शन को व्यवहार में लाना। उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों से पार पाने के लिए शहरी विकास एवं योजना में आईआरबीएम को एकीकृत करने की जरूरत है। यूआरएमपी ढांचे में स्थिरता को प्राथमिकता में रखते हुए तैयार किया गया है, जिसमें पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक लाभ शामिल हैं।उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक शहर के लिए यूआरएमपी ढांचे में दिए गए 10 उद्देश्यों को चुनने का विकल्प है। उन्होंने अंत में कहा कि यूआरएमपी ढांचा शहरवार प्रबंधन योजना है, जो इंटरकनेक्टिविटी लाता है और बड़े पैमाने पर लाभ दे सकता है।
इस पृष्ठभूमि के साथ प्रो. मोना अय्यर ने आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले नगर एवं ग्राम नियोजन संगठन यानी टीसीपीओ से श्री आर. श्रीनिवास को नदी केंद्रित शहर संबंधी दिशानिर्देशों पर बात करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने कहा कि भारत में दस लाख की जनसंख्या वाले 53 शहर हैं और लगभग 42 शहर नदियों के किनारे स्थित हैं। नदियों से सटे शहर पानी की व्यवस्था, प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता को दर्शाते हैं, जो शहरों के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रसारित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार हैं और नदी क्षेत्रों को चित्रित करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने दिशा-निर्देशों के घटकों के बारे में बताया किये विकसित न किए जाने वाले क्षेत्र, प्रतिबंधित क्षेत्र आदि को परिभाषित करते हैं।शहरों में नदी क्षेत्रों के लिए सहयोग करने और जल संसाधनों के विकास के साथ-साथ मजबूत शहर की तस्वीर को विकसित करने के लिए दिशा-निर्देशों का मसौदा तैयार किया गया है।अंत में उन्होंने कहा कि हमें नीले और हरे रंग के बुनियादी ढांचे को एकीकृत करने और भूजल संसाधनों को रिचार्ज करने की जरूरत है।
चर्चा जारी रखते हुए प्रो. मोना अय्यर ने विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र से डा. एस. रोहिल्ला को दिशा-निर्देशों को कैसे लागू किया जाए, इस पर बात करने के लिए आमंत्रित किया।उन्होंने कहा कि गंगा बेसिन एक जटिल मुद्दा है और गंगा नदी के फैलाव में 600 बड़े केंद्रों के साथ लगभग 2000 शहरी केंद्र हैं।छोटे और मध्यम शहरों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इनका आकार तेजी से बढ़ रहा है। अगर हम नदी केंद्रित शहरी नियोजन को विकसित और लागू नहीं कर पाएंगे तो अवसर खो देंगे।उन्होंने कहा कि योजना में विकेंद्रीकरण लाने के लिए व्यक्तिगत इमारतों और पड़ोस के स्तर पर ध्यान केंद्रित करके इसे जल जीवन मिशन (शहरी), स्मार्ट सिटी मिशन, स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) जैसी अन्य चल रही योजनाओं और मिशनों के साथ जोड़ा जा सकता है।उन्होंने इस तथ्य को दोहराते हुए अपनी बात खत्म की कि जल संवेदनशील बनावटों को शहरी विकास के डिजाइनों के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
प्रो. मोना अय्यर ने चर्चा के विषय पर अपने विचार साझा करने के लिए प्रतिभागियों में से विभिन्न पेशेवरों को आमंत्रित किया। आईआईटी कानपुर के प्रो. विनोद तारे ने अतिरिक्त आर्द्रभूमि यानी वेटलैंड विकसित करने, विकेंद्रीकृत जल प्रबंधन डिजाइन और मानव निर्मित एवं प्राकृतिक तरीकों के सर्वोत्तम उपयोग के बारे में बात की, ताकि शहरों की योजना में नदियों की संवेदनशीलता को लाया जा सके। उन्होंने मुख्य रूप से प्रकृति-आधारित समाधानों का उपयोग करने और योजना में सभी प्रकार के जल निकायों को शामिल करने वाली जल प्रणाली की अवधारणा को समझने पर ध्यान केंद्रित किया। उनके बाद, रॉयल डच दूतावास की डा. अनीता कुमारी शर्मा ने नदी के समग्र स्वास्थ्य के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए शहरों की योजना बनाने में दीर्घकालिक योजना और सभी हितधारकों को शामिल करने की आवश्यकता के बारे में बात की।
प्रो. एस. चारी ने दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही, इसमें मुख्य सचिव स्तर पर शहर केंद्रित शासकीय ढांचे का विकास शामिल है, चूंकि शहरी स्तर से आगे कई विभागों का अधिकार क्षेत्र है। दूसरा उन्होंने शहरों को नदियों को लेकर संवेदनशील बनाने में सहयोग करने के लिए नवाचार और स्टार्टअप की खातिर एक मंच तैयार करने की भी बात रखी। एसआईडब्ल्यूआई की सुश्री पांचाली ने केपटाउन, मियामी और अन्य अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों के मामलों के अध्ययन का उल्लेख किया, जिन्हें भारत में नदी को लेकर संवेदनशील शहरों के विकास के लिए संदर्भित किया जा सकता है। उन्होंने नियामक स्तर पर सहयोग और एकीकरण के बारे में बात की।
अंत में श्री सुरेश बाबू ने कहा कि नागरिक जुड़ाव के लिए हमें विभिन्न स्तरों पर शहरी शासन को मुख्यधारा में लाने और शहरों को नदियों को लेकर संवेदनशील बनाने पर ध्यान देने के साथ ही प्रासंगिक समाधान खोजने की खातिर अक्सर चर्चा में संलग्न होने के लिए एक मंच बनाने की जरूरत है।सत्र का समापन करते हुए प्रो. मोना अय्यर ने चर्चाओं और विचार-विमर्शों का सारांश पेश किया और एनएमसीजी महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा ने सभी को उनके योगदान और सुझावों के लिए धन्यवाद दिया।
एमजी/एएम/एएस